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६४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
आर्य सुहस्ती से महातपस्वी आर्य महागिरि का परिचय पाकर श्रेष्ठी वसुभूति अत्यन्त प्रभावित हुआ । आर्य सुहस्ती श्रेष्ठी परिवार को उद्बोधन देकर स्वस्थान पर लौट आए। ___ आर्य महागिरि को लक्षित कर अपने पारिवारिक जनो को निर्देश देते हुए श्रेष्ठी वसुभूति ने कहा-"अपने घर पर जब कभी ऐसा महा-अभिग्रही साधक, तपस्वी मुनि का पदार्पण हो, उन्हे भोजन को प्रक्षेप योग्य कहकर प्रदान करे। ऊर्वर धरा मे समय पर उप्त स्वल्प वीजो की परिणति बहुत विस्तारक होती है। इसी भाति सयति दान महान फलदायक है। इससे यश का सचय होता है एव कल्मष भी दूर हो जाता है। ___ आर्य महागिरि दूसरे दिन भिक्षाचरी करते हुए सयोगवश श्रेष्ठी वसुभूति के घर पहुचे । दान देने मे उद्यत उन लोगो ने मोदक सभृत हाथो को पुरस्सर कर भक्ति भावित हृदय से प्रार्थना की-"मुने । ये मोदक हमारे द्वारा परित्यक्त भोजन है । हम प्रतिदिन क्षीर के साथ इनको खाते है । अत्यधिक सरस घृतशक्कर परिपूरित भोजन ग्रहण कर लेने के बाद आज इन मोदको से हमे कोई प्रयोजन नही है।"
आर्य महागिरि अपनी प्रवृत्ति मे पूर्ण सजग थे एव अभिग्रह के प्रति सुदृढ थे । श्रेष्ठी वसुभूति के पारिवारिक सदस्यो की मर्यादातिकान्त भक्ति एव अपूर्व चेप्टाए देखकर उन्होने विशेप उपयोग लगाया एव प्रदीयमान भोजन-सामग्री को अशुद्ध, अकल्पनीय एव अनेपणीय समझकर उसे ग्रहण नही किया। अनाचरणीय मार्ग का अनुगमन करने से निस्तार नहीं होगा-यह सोच आत्म-गवेपक मुनि महागिरि बिना भोजन ग्रहण किए वन की ओर चले गए। ___आर्य सुहस्ती से आर्य महागिरि जव मिले तव उन्होने वसुभूति के घर पर घटित घटना से उन्हे अवगत कराते हुए कहा-"सुहस्ती | तुमने श्रेष्ठी वसुभूति के सम्मुख मेरा सम्मान कर मेरे लिए अनेषणीय स्थिति उत्पन्न कर दी
क्षमाधर आर्य सुहस्ती ने आचार्य महागिरि के चरणो मे नत होकर क्षमा-प्रार्थना की और बोले-"इस भूल का आगे के लिए पुनरावर्तन नही होगा।"
यह घटना आर्य महागिरि एव सुहस्ती के गुरु-शिष्य-सम्बन्ध पर प्रकाश डालने के साथ अभिग्रहधारी श्रमणो की विशुद्धतम कठोर आचार-साधना, गुरु के कटु उपालम्भ के प्रति भी शिष्य का विनम्र भाव, श्रावक समाज की मुनि जनी के प्रति आस्था एव उदग्र भक्ति तथा गृहस्थ समाज को वोध देने हेतु उनके घर पर बैठकर उपदेश देने की पद्धति आदि कई तथ्यो को अनावृत करती