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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २
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ठित कराया था । उन्हीं के समसामयिक उक्त विशालकीर्ति थे, जिनको कवि ने गुरु रूप से उल्लेखित किया है । यद्यपि विशालकीर्ति नाम के कई भट्टारक हो गए हैं, परन्तु प्रस्तुत विशालकीति नागौर के पट्टधर ज्ञात होते हैं ।
ग्रन्थ रचना - शाह ठाकुर के दो ग्रन्थ मेरे अवलोकन में प्राये हैं- महापुराण कलिका, और शान्ति नाथ चरित । ये दोनों ही ग्रंथ अजमेर के भट्टारकीय भंडार में उपलब्ध हैं । इनमें महापुराण कलिका में त्रेसठ शलाका पुरुषों का परिचय हिन्दी पद्यों में दिया है, कहीं-कहीं उसमें संस्कृत पद्य भी मिलते हैं । भाषा में अपभ्रंश और देशी शब्दों का बाहुल्य है। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने २७ सन्धियों में पूर्ण की है। इसका रचना काल सं० १६५० है । उस समय दिल्ली में हुमाऊँ नन्दन अकबर का राज्य था । श्रौर जयपुर में मानसिंह का राज्य था । कवि ने इस त्रेसठ पुण्य पुरुषों की कथा को अज्ञान विनाशक, भव जन्म छेदन करने वाली, पावनी और शुभ करने वाली बतलाया है ।
या जन्माभवछेद निर्णयकरी या ब्रह्म ब्रह्म श्वरी । या संसारविभावभावनपरा या धर्मकमापुरी । प्रज्ञानादथध्वंसिनी शुभकरी ज्ञेया सदा पावनी, या वेसट्ठिपुराण उत्तमकथा भव्या सदा यापुनः ॥
महा पुराण कलिका
कवि की दूसरी कृति 'शान्ति नाथ पुराण' है जो अपभ्रंश भाषा की रचना है, जिसमें पांच सन्धियाँ हैं । afa ने उनमें शान्तिनाथ का जीवन परिचय अंकित किया है। जो चक्रवर्ती कामदेव और तीर्थकर थे । रचना साधारण है । कवि ने सीधे-सादे शब्दों में जीवन-गाथा अंकित की है । कवि ने यह विक्रम सं० १६५२ भाद्र शुक्ला पंचमी के दिन चकत्ता वंश के जलालुद्दीन अकबर बादशाह के शासन काल में, ढूंढाड देश के कच्छप वंशी राजा मानसिंह के राज्य में लुवाइणी पुर में समाप्त किया है । उस समय मानसिंह की राजधानी ग्रामर थी ।
कवि की अन्य रचनाओं का अन्वेषण करना आवश्यक है । कवि का समय १७वीं शताब्दी का मध्यकाल है ।
भट्टारक विश्वसेन
संघ के नन्दित गच्छ रामसेनान्वय के भट्टारक विशालकीर्ति के शिष्य थे ।
१. देखो, प्राचीन जैन स्मारक मध्यभारत व राजपूताना पृ० १९६६ २. " कल्याणं कोति लोके जसु भवति जगे मंडलाचार्य पट्टे, नद्याम्नाये सुगच्छे सुभग श्रुतमते भारतीकार मूर्ते ।
सोऽयं मे वैश्य वंशे ठकुर गुरुयते कीर्ति नामा विशालो ।।" ३. सवत् चिति आरिण जो जगि जारणी सोलसइ पंचासइले । सटी सुदि माह अरु गुरु लाह रेवती नरिवत पवरण भले ॥ दुवई – किय कवि महापुरिस गुरण कलिका सुइ संबोह सारणें । भवि पव्वहरणाइ जिद्द बुधी पइडहु भुवणि कवि इणें ॥ ३ ४. साहि अकवर दिल्ली मंडले हुमाऊं नंदन च खंडले,
पुब्वा पच्छिम कूट दुहाइ उत्तर दक्खिण सव्व अपणाइ । ५. संवत सोलासइ सुभग सालि, बावन वरिसउ ऊपरि विसालि । भादव सुदि पंचमि सुभग वारि, दिल्ली मंडलु बेसहु मारि
अकबर जलालदी पाति साहि, वारइ तहु राजा मानसाहि ।
कुरभवंसि आंवरि सानि, बूढाहड देहु सोभिराम - शान्तिनाथ चरित प्रशस्ति, भट्टारकीय अजमेर भण्डार
महापुराण कलिका सन्धि २३