________________
४५०
जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ त्रैलोक्य दीपक-इस ग्रन्थ में तीन लोक के स्वरूप का कथन किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के त्रिलोकसार का संस्कृत रूपान्तर है । उसे देखकर ही इसकी रचना की गई है। इस ग्रन्थ में तीन अधिकार-अधोलोक-मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक-इन तीनों अधिकारों के श्लोकों की कुल संख्या १२८१ श्लोक प्रमाण है। प्रथम अधिकार में २०५ श्लोक हैं। जिनमें लोक का स्वरूप बतलाते हुए लिखा है कि जिसमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, प्राकाश और काल का संघात पाया जाता है वह लोक है। उस लोक का मान दो प्रकार का है। लौकिकमान और लोकोत्तर मान । इन दोनों मानों के भेद-प्रभेदों का कथन किया गया है।
दूसरे अधिकार में मध्य लोक का वर्णन है, जिसकी श्लोक संख्या ६१६ है। मध्य लोक का कथन करते हुए द्वीप, समुद्रों के वलय, व्यास, सूची व्यास, सूक्ष्म परिधि, स्थूल परिधि सूक्ष्म और स्थूल फल प्रादि का गणित द्वारा कथन किया है। जम्बूद्वीप के षट् कूलाचल और सप्त क्षेत्रों प्रादि का गणित द्वारा विस्तार के साथ वर्णन दिया है। भारत क्षेत्र के उत्सर्पिणी अवसर्पिणी के षट कालों का वर्णन करते हए, तीर्थकरों, चक्रवतियों, नारायण प्रति नारायण श्रेसठ शलाका पुरुषों की आयु, शरीरोत्सेध, और विभूति आदि का सुन्दर वर्णन किया गया है । मध्यलोक के कथन में व्यासपरिधि, सूची फल, क्षेत्रफल और घनफल आदि के लाने के लिए करण सूत्र भी दिये हैं। सदृष्टियाँ भी यथास्थान दी हैं।
ऊर्ध्वलोक के वर्णन में भवनवासी, व्यन्तर ज्योतिषी और कल्पवासी, देवों का वर्णन, प्रायू, शरीरोत्सेध, परिवार, विभव, कथन संख्या, विस्तार उत्सेध आदि का वर्णन किया गया है। यह सब त्रिलोकसार के अनुसार किया गया है।
कवि ने यह ग्रन्थ नेमिदेव की प्रार्थना से बनाया है। जो पूरवाडवंश में समस्त राजाओं के द्वारा माननीय कामदेव नाम का राजा हुआ। उसकी पत्नी का नाम नामदेवी था, जिससे राम और लक्ष्मण के समान जोमन और लक्ष्मण नाम के दो पुत्र हुए थे । पंच संग्रह दीपक की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जोमन की पुत्री बड़ी गुणाग्र और धर्माराम रूप वृक्ष की वर्धिका, सर्वज्ञपदारविंदनिरता, सद्दान चिन्तामणी, और व्रतशोलनिष्ठा थी। प्रशस्ति पद्य के अन्तिम प्रक्षर अटित होने से उसका नाम ज्ञात नहीं हो सका जैसा कि उसके पद्य से प्रकट है।
जोमन का पूत्र नेमिदेव था, उसकी माता का नाम पद्मावती था । नेमिदेव जिनचरणसेवी और सम्यकव से विभूषित था। बड़ा उदार न्यायी, दानी, स्थिर यश वाला और प्रतिदिन जिनदेव की पूजा करता था। उक्त नेमिदेव के अनुरोध से ही ग्रन्थ की रचना की गई है। ग्रन्थ में रचना काल नहीं दिया। इसकी एक प्राचीन प्रति सं० १४३६ में फीरोजशाह तुग़लक के समय की योगिनीपुर (दिल्ली में लिखी हुई ८६ पत्रात्मक उपलब्ध है। जो अतिशय क्षेत्र महावीर जी के शास्त्रभंडार में उपलब्ध है। उससे जान पड़ता है कि त्रिलोकदोपक सं० १४३६ से पूर्व रचा गया है।
१. अस्त्यत्र वंशः पुरवाड़ संज्ञ: समस्त पृथ्वीपति माननीयः ।
त्यक्त्वा स्वकीया सुरलोक लक्ष्मी देवा अपीच्छन्ति हि यत्र जन्म ॥६३ तत्र प्रसिद्धोऽजनि कामदेव: पत्नी च तस्या जनि नामदेवी। पुत्रौ तयो|मन लक्ष्मणाख्यो बभूवतः राघव लक्ष्मणाविव ॥६४ -त्रैलोक्य दोपक प्रक २. जोमणस्य दुहिता जाता गुणानेसरा । धर्मारामतरो: प्रवर्धन सुधाकल्पक पुण्योह का । श्री सर्वज्ञपदारविंदनिरता सद्दान चिंतामणीश्चारित्त व्रत देवता सुविदिता श्री वाइदे......। २२१ –अनेकान्तवर्ष २३ कि०४ पृ० १४६ ३. पद्मावती पुत्र पवित्रवंशः क्षीरोदचन्द्रामलयोः यथास्य । तनोरुहः श्रीजिनपादसेवी स नेमिदेवाश्चिरमत्र जीयात् ।।
-पंच सं० दीपक शांतिनाथ सेनभंडार खभात ४. देखो, आमेर शास्त्रभंडार जयपुर की सूची प० २१८ अन्य० नं. ३०६ प्रति नं. २