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ग्यारहवीं और बारहवी शताब्दी के विद्वान, आचार्य
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चामुण्डराय चामुण्डराय-ब्रह्म-क्षत्रिय वंश के वैश्य कुल में उत्पन्न हुए थे। शिलालेख में इन्हें 'ब्रह्मक्षत्रकुलोदयाचल शिरोभूषामणि' कहा गया है । यह गंगवशी राजा राचमल्ल के प्रधान मंत्री और सेनापति थे । राचमल्ल चतुर्थ का राज्यकाल शक सं०८६६ से १०६ (वि० सं० १०३१ से १०४१) तक सुनिश्चित है। ये गगवनमारसिंह के उत्तराधिकारी थे। चामुण्डराय इनके समय भी सेनापति रहे हैं। इनका धरु नाम 'गोम्मट' था प्रोर 'राय' राजा राचमल्ल द्वारा प्रदत्त पदवी थी। इस कारण इनका नाम गोम्मटराय भी था। बाहबलि की मूर्ति का नाम 'गोम्मट. जिन' और पंच संग्रह का नाम 'गोम्मट-संग्रह सूत्र' इन्हीं के नाम के कारण हुपा है क्योंकि चामुण्डराय के प्रश्न के अनसार ही धवलादि सिद्धान्तों पर से नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने गोम्मट सार की रचना की है।
मारसिंह और इनके उत्तराधिकारी पुत्र राचमल्ल का समय गंगवंश के लिए भयावह था: क्योंकि पश्चिमी चालक्य. नोलम्ब तथा पल्लव प्रादि गंग वश के शत्रु थे । चालुक्यों के खतरे के विनाश का श्रेय चामुण्डराय को है। श्रवणवेल्गोल के कगे ब्रह्मदेव स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख (६७४ ई०) में लिखा है कि इस प्रसिद्ध दर्गपर हए अाक्रमण ने विश्व को प्राश्चर्य में डाल दिया। चामुण्डराय ने अपने पुराण में इस बात को स्वीकार किया है कि इस विजय में ही उन्हें 'रणरंग सिह' की उपाधि प्राप्त हुई थी।
चामुण्डराय केवल महामात्य ही नही थे किन्तु वीर सेनानायक भी थे। इनके समान शूग्वीर और दढ स्वामी भक्त मत्री कर्नाटक के इतिहास मे अन्य नही हुआ । इन्होने अपने स्वामी के लिए अनेक युद्ध जीते थे। गोविन्दराज, वेकागज आदि अनेक राजानो को परास्त किया था। इसके उपलक्ष्य में उन्हें समग्र बोस तण्ड. रणरंगसिह, वैरिकूल-काल दण्ड, असहाय पराक्रम, प्रतिपक्ष राक्षस, भुज विक्रम और समर-परशराम आदि विरुद प्राप्त हुए थे । और कौनसी उपाधि किस युद्ध के जीतने पर मिली, इसका उल्लेख निम्न प्रकार है :
खडग युद्ध में वज्वलदेव को हराने पर उन्हें 'समरधुरंधर उपाधि प्राप्त हुई थी। नोलम्ब युद्ध में गोनर [ के मैदान में उन्होंने जो वीरता दिखलाई उसके उपलक्ष में 'वीर मार्तण्ड' की उपाधि मिली। उक्कांगी
राजादित्य से वीरता पूर्वक लड़ने के उपलक्ष में 'रणरंग सिह' उपाधि प्राप्त हुई। और वागेयूर वा (वामीकर) के किले में त्रिभवन वीर को मारने और गोविन्दराज को उसमें न घुमने देने के उपलक्ष में वैरीकल-काला उपाधि प्राप्त हुई। राजा काम के किले में राज वास, सिवर, कुणामिक प्रादि योद्धानों को परास्त करने के कारण उन्हें भज विक्रम' उपाधि से अलंकृत किया गया। अपने छोटे भाई नागवर्मा के घातक मुद्राचय को, जो चलदंक गंग और गंगर भट्ट के नाम से प्रसिद्ध था, मार डालने के उपलक्ष में 'समरपरशुराम' पद से विभपित किया गया। एक कबीले के मखिया को पराजित करने के उपलक्ष में 'प्रतिपक्ष-राक्षस' उपाधि मिली। और अनेक योद्धाओं को मारने के कारण उन्हें 'भटमारि' उपाधि प्राप्त हुई । धार्मिकता और नैतिकता की दृष्टि से भी उन्हें समय कर, सत्य युधिष्ठिर, पौर सुभट चूडामणि आदि उपाधियां प्राप्त हुई।
इन सब उपाधियों से ऐसा लगता है कि चामुण्डराय अपने समय का कितना प्रतापी और वीर सेनापति था। यह केवल वीर सेनापति ही नहीं था किन्तु अच्छा विद्वान् और कवि भी था। उनकी उपलब्धियां उनकी महत्ता और गौरव की संद्योतक हैं।
१. शिलालेख नं० १६५ जैन लेख सं० प्रथम भाग लेख नं० १०६ ।
२. श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादशासनगुहाभ्यन्तर निवासिप्रवादि मदांधसिधुर सिंहायमान सिंहनन्दि मनीन्द्राभिनन्दित गंगवंशललाम राज सर्वज्ञाद्यनेक गुणनामधेय भागधेय श्रीमद राजमल्ल देव महीवल्लभ महामात्यपदविराजमान रणरंग मल्लासहायपराक्रमगुणरत्नभूषण सम्यक्त्वरत्न निलयादिविविध गुणनामसमासादित कीर्तिकान्त श्रीमच्चामुंडराय भब्य पुण्डरीक ।
-मंद प्रबोधिकाटीका उत्थानिका वाक्य