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________________ जैनधर्म . जीवन और जगत् जीवात्मा कोई स्वतत्र पदार्थ नही है। जिस प्रकार अरणि की लकडी से आग, दूध से घी और तिलो से तेल उत्पन्न होता है, वैसे ही पचभूतात्मक शरीर से जीव उत्पन्न होता है । शरीर के नष्ट हो जाने पर आत्मा नाम की कोई वस्तु शेष नही रहती। आचार-व्यवहार पर विचार का प्रभाव ये दो विचार-धाराए हैं जो प्राचीनकाल से ही मानव-जीवन के विचार और आचार पक्ष को प्रभावित करती रही हैं । इनसे केवल दार्शनिक दृष्टिकोण ही नही बनता, किन्तु वैयक्तिक जीवन से लेकर सामाजिक, राष्ट्रीय और धार्मिक जीवन की नीव इन्ही पर खडी होती है। क्रियावादी और अक्रियावादी का जीवन-पथ एक जैसा नहीं हो सकता। क्रियावादी के प्रत्येक कार्य मे आत्म-शुद्धि का ध्यान रहेगा। अक्रियावादी उसकी चिंता नही करेगा । जहा आत्मवादी की गति त्याग की ओर होगी वहा अक्रियावादी की गति होगी भोग की ओर । क्रियावादी और अक्रियावादी वर्गों को आज की भाषा मे आस्तिक और नास्तिक कहा जाता है । इस विचार धारा का प्राचीन प्रतिनिधि चार्वाक-दर्शन था । आधुनिक कम्युनिज्म को उसी का विकसित रूप माना जा सकता है। जैन-धर्म आस्तिक दर्शनो मे एक है । वह आत्मवाद, कर्मवाद, परलोकवाद और निर्वाणवाद का पुरस्कर्ता है। आत्मा क्या है युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के शब्दो मे जीव, जीव के गुण और जीव की क्रियाए ---इन सबको आत्मा कहते हैं। आत्मा एक चेतनावान पदार्थ है । उसका लक्षण है---उपयोग । उपयोग का अर्थ है-चेतना का व्यापार । आत्म तत्व की पहचान का आधार है उसकी ज्ञान-दर्शन में परिणति तथा सुख-दुख की अनुभूति । आत्मा जड पदार्थ से उत्पन्न नहीं है। वह चैतन्य गुणयुक्त स्वतन्त्र मत्ता है । प्रश्न होता है, आत्मा इन्द्रिय और मन के प्रत्यक्ष नहीं है, फिर उन्हे क्यो माना जाए? इसके समाधान मे कहा गया कि पदार्थों को जानने का माध्यम मात्र इन्द्रिय और मन का प्रत्यक्ष ही नही, इनके अतिरिक्त अनुभवप्रत्यक्ष, योगी प्रत्यक्ष, अनुमान ओर आगम से भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है । इन्द्रिय और मन की शक्ति अत्यन्त सीमित है । इनसे सब कुछ नही जाना जा सकता । इन्द्रिया मात्र स्पर्श, रस, गध और वर्ण को जान सकती हैं । मन भी इन्द्रियो का अनुगामी है । आत्मा अरूपी सत्ता है। वह स्पर्श, रस-गध और वर्ण नहीं है । शब्दो का प्रयोग करने वाला, गध का
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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