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जैनदर्शन में वात्मवाद
अनुभव करने वाला, स्पगं मोर रस का मान करने वाला तत्त्व नात्मा है । किन्तु यह मोनिक उपकरणो के द्वारा जाना नहीं जाता । (आयारो) विज्ञान और आत्मा
प्राचीन समय में ही मानव-मन मे आत्मा को जानने की प्रबल इच्छा गी है । उप ध नाधन-गमत्री द्वारा उसी योजें हुई हैं। प्रयोग और परीक्षण भी घरा। आज ने अढाई हजार पं पहले वौशाम्बी पक्ति गाली नभ प्रदेशी ने अपने जीवन के नाम्निमाल में शारीरिक अवयवो के विश्लेषण एव परीक्षण द्वारा आत्म-प्रत्यक्षीकरण । अनेक प्रयोग किए थे। पर 7 आत्मा को पानने-देग्रने रे नदय में नवंया अनफन रहा । आधुनिक वैज्ञानिक भी लात्मा को गिद करने में सफल नहीं हुए हैं। उन्होने १०३ तरच माने हैं। मब मूतं (म्पी) है । वैज्ञानिको ने गितने प्रयोग किए हैं, मूतं त्यो परी गिए हैं। फिर भी वे आत्मा र अम्नित्व के बारे में यि मप नही पहन पाए हैं। इनका रण यही है, भौनिक उपकरणो तथा दिया गे माग भौतिक पदार्थों का बोध-विश्लेषण किया जा सकता है. पर भोतिर, अमूत्त मात्मा का पान उनमें नहीं हो सकता। उनके लिए इद्रियागोत चेतना गा जागरण नायग्य है । आत्मा ओ- परलोक की न्वेषक परिपा दम्य पर औलिय नौज ने निगा-" हमें भौनि शान के पीछे पर पारभौतिक विषयों को नही भून नाना चाहिए ।' उन्होंने मागे लिगा "ता जा पा को गुण नही । कि त म नमाई ,म्पय को प्रदगिन ने पानी स्वतन्त्र मत्ता है । प्राणी मात्रा मनात एक प्रेमी यम्नु :'पिग गेरो नामाप अल नहीं हो जाता।" य- विचार जनदगा दान सिट। आत्मा और गरीर