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जनदर्शन मे बात्मवाद
अस्तित्व को म्वीकार करता है।
उमरे आधार पर भारतीय चितन दो धाराओं में विभक्त हो गया। एक धाग का नाम है, जिन्यावाद और दूसरी का नाम है अक्रियावाद ।
___ आत्मा, कम, पुनर्जन्म और मोक्ष पर विश्वास करने वाले क्रियावादी तथा इन पर विश्वास न करने वाले अक्रियावादी कहलाए ।
प्रियावादी वर्ग ने सयमपूर्वक जीवन विताने का, धर्माचरण करने का उपदेश दिया। पयोकि उसके अभिमत से मात्मा का अस्तित्व है । वह अपने मुहत बोर दुष्कृत का पल नोगती है । शुभ-फर्मों का अच्छा और अशुभ कर्मों का बुरा फल होता है । आत्मा का पूर्वजन्म मोर पुनर्जन्म होता है । वह अपने पुण्य और पाप कर्मों पे साथ ही परलोक मे जाती है। पुण्य नौर पाप दोनो का भय होने मे अमीम आत्म-सुखमय मोक्ष होता है । इस चिंतन के आधार पर लोगो मे धर्म के प्रति रुचि जागृत हुई। अल्प-इच्छा, अल्पबारम्भ और अल्प परिग्रह का महत्त्व बढ़ा । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की उपासना करने वाला महान् गमझा जाने लगा। समाज मे सयम और त्याग की प्रतिष्ठा हुई।
भक्रियावादी वर्ग ने सुप-पूर्वक जीवन बिताने को ही परमापं माना । उमा अभिमत मे सुकृत और दुष्कृत का शुभ और अशुभ फल नहीं होता। बारमा गरीर मे नाग ये साप ही नष्ट हो जाती है। वह परलोक में जाकर उत्पन्न नही होती। अप्रियावाद का घोप रहा-जो काम-भोग प्राप्त है, उनको जी भर कर नोगो, फल फा पया भरोसा ? परलोक है या नही, रिराने देखा है। इन विचार-धारा वे प्रभाव ने लोगो मे भौतिक लालसा प्रबल हुई। महा-इचदा, महा-बारम्भ और महा-परिग्रह या राहु जगत् पर हा गया।
प्रियावाद ? नत्व-प्रतिपादन का मुप्य आधार हा-अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष । उन्होने कहा--मात्मा के अस्तित्व में मदेह मत करो। आत्मा असारे मलिए इद्रिय-माए नरी है। पर इद्रिय-माप न होने मात्र ने उसके स्वतः स्तित्व को नकारा नहीं का पता । इन्द्रिया जमूर्त पदार्थ फो नहीबारामती, फिर भी पैतन्य : व्यापार से आधार पर उमवे अम्नित्व पा दोध होता है। (उत्तरउभयपाणि)
नरे विपरीत कायावाद विपास इन्द्रिय-प्रत्यक्ष पर रहा।
मा से यह कार इतना ही है, जितना दृष्टिगोचर होता है। मारिदिप नहीं है, इसलिए म अन्तित्व मे सदेह है। इस
मेरी पी नि दायु और हारा ये पांच महामूद हो दावित मसाप घनर जपका गला उसन्न होती है। तो दान होगांपरपमा या मी नाग हो जाता है।