SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठ ग्नि है । मुक्ति परीक्षाओ का क्रम चालू है। इन परीक्षाओ मे देश भर ने मंक डोरेन्दो से हजारो छात्र-छात्राए प्रतिवर्ष सम्मिलित होते हैं । पूज्यपाद गुरुदेव श्री एव श्रद्धेय आचार्यप्रवर ने अमीम अनुग्रह कर योगक्षेम वर्ष पूर्व पनाचार पाठमाला की पाठ्य सामग्री लिखने का निर्देश मु प्रदान पिग । इमे में अपना विशेष सौभाग्य मानती हू। सन् १९८९९० में ये पाट तैयार हुए । पाठ्यक्रम मे स्वीकृत/प्रयुक्त भी हो गये ।। मन् १९९१ गुरुदेव श्री का जयपुर प्रवास । आदरास्पद महाश्रमणी जी का मरेत मिला जैनधर्म को आधुनिक भाषा-शैली और सदर्भो मे प्रस्तुत करने की अपेक्षा है। यद्यपि जैनधर्म को समग्रता से जानने/समझने हेतु हमारे धर्म गघ में काफी साहित्य लिखा गया है, किंतु विषय की गभीग्ला और भाषा की जटिलता के कारण जन-सामान्य उसका पूरा लाभ नही उठा माता । आज के पढ़े-लिखे युवक-युवतियो का जैन तत्त्व-दर्शन में प्रोग हो, ह भी जारी है। इन दष्टियो से पत्राचार पाठमाला के लेखो का अच्छा उपयोग हो सकता है। यदि वे पुस्तक रूप में एकत्र उपलब्ध हो जाए गो परीक्षायियों के अतिरिक्त आम पाठक को भी सुविधा हो सकती है। गायीप्रमुखात्रीजी की इसी प्रेरणा की निष्पत्ति है प्रस्तुत पुस्तक "जैनधर्म जीवन और जगत्"। इसके माध्यम से मैंने जैनधर्म के विचार और आनार पक्ष को जीवन मूल्यो एव जागतिक सदर्भो मे सरल भाषा-शैली में प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयत्न किया है । मेरे अध्ययन, अनुशीलन एव लेखन मे आधारभूत ग्रन्थ रहे हैं महामरिम पूज्यपाद गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा रचित न मिद्धात दीपिका, श्री मिक्ष न्यायणिका, जैन तत्त्व-विद्या, गहस्थ को भी अधिकार है धर्म करने गयादि कसा महान दानित आचार्यश्री महाप्रज्ञ की उत्कृष्ट कृतियापोधि, जैनदर्णन मान और मीमाना आदि । ये ग्रथ प्रस्तुत पुस्तक लिखते समान मादीप की भाति मेग माग-दर्शन करते रहे हैं। मैंने इनका भरपूर fr । मो लिए श्रद्धाप्रणत ह आराध्य दयी के प्रति । मुनि श्रीमानी द्वितीय की पुस्नर विश्व प्रहेलिका तथा अन्य विद्वानो/ iri यो घोगा भी ययावश्यर उपयोग किया है। उनके प्रति दादि- तामाता यावी ।
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy