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________________ पुरोवाक् जन तत्त्व-दर्शन भारतीय चितन और आध्यात्मिक जीवन-शैली का प्रतिनिधि दर्शन है । वह शुद्ध अर्थ मे मोक्ष-दर्शन है, अध्यात्म-दर्शन है, फिर भी उगका तत्य-नान अत्यन वैज्ञानिक है। जैन-दर्शन की अवधारणा मे मोलिन-तत्त्व टो है-जीव और अजीव अथवा जड और चेतन। इन दोनो का सयोग ही ससार है तथा वियोग मोक्ष है । मोक्ष का मूल है सयम-साधना। उसके लिए जीव अजीव का बोध आवश्यक है। जैन तत्त्व-विद्या का पल्लवन पन्ही दो ध्रुवो से हुआ है। शास्त्रकार लिखते हैं--- नंफाल्य द्रव्यपटक, नवपदसहित जीवपटकापलेश्याः, पञ्चान्ये धास्तिकाया प्रत समितिगति ज्ञान चारित्र भेदा. । इत्येतन्मोक्षमूल विभवनमाहितं प्रोक्त महंदि रोरा, प्रत्येति प्रदधाति स्पृशति घ मतिमान् य.स शुद्धिवृष्टिः ।। कालिय अस्तित्व वाले छह द्रव्य, नो पदार्थ, पड़जीव निकाय, छह नेपया, पञ्चास्तिकाय प्रत, समिति, गतिघक, ज्ञान और चारिप-यह मोक्षमूलक ज्ञान लोकत्रय पूजित अहंतो द्वारा प्रतिपादित है। जो प्राणी इस धर्म पर प्रतीति करता है, श्रद्धा करता है और इसका पालन करता है, वही गुट जोयनदृष्टि सपन्न है। नतिम, सरितिया एव आध्यात्मिक मूल्यों की सुरक्षा के लिए अपेक्षित है जैन तत्त्व-विधा पे साथ युवा-मनीपा की सवादिता स्थापित हो, इससे आध्यात्मिक, सदाचार सम्पन्न, जिज्ञासु और तत्त्वज्ञ व्यक्तित्वो का निर्माण हो पता है । जैनधर्म और दर्शन की मौलिफता सुरक्षित रहे, ग्वाध्याय बी एफ पिशिष्ट शैली का जन्म हो, इस दृष्टि से गणाधिपति पूज्य गुरदेव श्री तुलगी धावक नमाज में स्वाध्यायशीलता और तरवरचि का अलय पट रोपला पाते है। परमपूज्य गुरदेव पी पी सचेतन मन्निधि में चलने वाली लोक मगनवारी यिविध आयामी प्रवत्तियो पी पटकन है-जैन विश्व भारती । मा जैनधर्म, दर्गा, तत्त्व-दिशा, ए भारतीय प्राच्य विधान के अध्ययन, भायापन सया बसुमधान या अनूठा पेन्द्र है । जैन-मुम्बार निर्माण की दृष्टि में विश्व भारती घेतांन मनप-सम्वृति नगर पे तत्वावधान में जनपिया या नद वारि र पत्राचार-पाटमाला या द्विवार्षिक पाठ्यक्रम निर्या
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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