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________________ के उदय के बिना नहीं हो सकता। इसलिये जब विधवाविवाह में अनन्तानुबन्धी का उदय आ गया तो सम्यक्त्व नष्ट होगया। समाधान (अ)-जय स्त्री के मर जाने पर, पुरुष दूसरा विवाह करता है तो तीन गगी नहीं कहलाता, तब पुरुष के मर जाने पर स्त्री अगर दसग विवाह करे तो उसके नीव राग कामान्धता क्यों मानी जायगी ? यदि कोई पुरुप एक स्त्री के रहते हुए भी ६६ हजार विवाह करे या स्त्रियाँ रक्खे तो उस का यह काम बिना तीव्र गगके नहीं होसकता। लेकिन ६६ हज़ार पनियों के तीवगग से भो सम्यनवका नाश नहीं होता, बल्कि वह ब्रह्मचयावती भी रह सकता है। जब इतना तीव राग भी सम्यक्त्व का नाश नहीं कर सकता नव पति मर जाने पर एक पुरुष से शादी करने वाली विधवा का सम्यक्त्व या अणु. व्रत कैस नष्ट होगा? और अणुव्रत धारण करने वाली विधवा एसी पतित क्यों मानी जायगी कि जिम्मम उसे ग्रहण करने वाले का भी सम्यक्त्व नष्ट हो जावे ? विधवाविवाह से व्यभि. चार उतना ही दर है, जितना कि कुमारी विवाह से । जैसे विवाह होने के पहिले कुमार और कुमारियों का संभोग भी व्यभिचार है, किन्तु विवाह होने के बाद उन दोनो का संभोग व्यभिचार नहीं कहलाता, उसी तरह विवाह होने के पहिले अगर विधवा सम्भोग करे तो व्यभिचार है, परन्तु विवाह के बाद होने वाला सम्भोग व्यभिचार नहीं है। गृहस्थों के लिये व्यभिचार की परिभाषा यही है कि-"जिसके साथ विवाह न हुआ हो उसके साथ सम्भोग करना" । यदि विवाह हो जाने पर भी व्यभिचार माना जायगा तो विवाह की प्रथा बिलकुल निकम्मी हो जायगी और आजन्म ब्रह्मचारियों का छोड़ कर सभी व्यभिचारी साबित होगे ।
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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