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प्रकृति ने कोई ऐसी विषमता पैदा की होनी जिससे पुनर्विवाह का निषेध मालुम होना तो कहने को गुंजाइश थी। अगर विधवा हो जाने से स्त्री का मासिकधर्म रुक जाता, स्त्रीत्व के चिन्ह नए हो जाते या बिगड़ जाते तो कुछ अवश्य ही स्त्री के पनर्विवाह का अधिकार छीना जाता।
आक्षेपक ने जो विषमता बतलाई है उससे तो स्त्रियों को ही विशेष अधिकार मिलने चाहिये, क्योंकि कर्तव्य और अधिकार ये एक ही सिक्के के दो पृष्ठ ( बाजू) है। इसलिये न्यायोचित बात यह है कि जहाँ कर्तव्य अधिक है वाहाँ अधिकार भी अधिक है सन्तानोत्पत्ति में स्त्रियों का जितना कर्तव्य है उसका शतांश कर्तव्य भी पुरुषों का नहीं है; इसलिये स्त्रियों को ज़्यादः अधिकार मिलना चाहिये।
म्त्री सम्पत्ति है, इसके खगडन के लिये देखो प्रश्न पहिला समाधान 'ओ' । स्त्री यावज्जीव प्रतिक्षा करती है और पुरुष भी करता है। खुलासे के लिये देखा प्रश्न पहिला समाधान ए (१-ए)।
श्रमर कोष और धनञ्जयनाममाला के पुनर्भ शब्द का खुलासा १-त' में देखिये । विवाह पाठ प्रकार के हैं; उनमें विधवाविवाह नहीं है-इसका उत्तर प्राक्षप "१-ज" में देखिये।
आक्षेप (c)—व्यभिचार को तीन श्रेणियाँ ठीक नहीं हैं। रखैल के साथ सम्भोग करना परस्त्रीसेवन की कोटि का हो पाप है । रखैल और विधवाविवाह में कुछ भेद नहीं है। परस्त्रीसेवन को व्यभिचार मान लेने से विधवाविवाह भी पाप सिद्ध हो गया: इसलिये सव्यसाची निग्रहस्थान पात्र है।
(विद्यानन्द) समाधान-ज्यभिचार को तीन श्रेणियाँ श्रीलाल जी ने