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आवश्यकता है, जिनके सहारे जीव व जड़ को इस संसार का स्वरूप गढ़ने बिगाड़ने अथवा बनाये रखने में सुविधा के सहायता मिले । गति स्थिति को इन दोनों पदार्थों का स्वभाव मानकर व्यवहार की रचना करने का श्रेय देने की अपेक्षा गति स्थिति को पृथक द्रव्य स्वीकार करने की पद्धति अत्यंत मौलिक व युक्ति पूर्ण है।
आज विज्ञान प्रत्येक ब्यवहार्य अणु के निर्माण स्थायित्व ध्वंशादि के लिये Negative Positiv3 नामक दो पृथक शक्ति FİTR Elestions, Protons, detrons. Nevtrons, Positrons, आदि को हयाती को मानता है । यह विचारने का विषय है कि इन शक्तियों की मूल धारणा धर्म अ धर्म नामक तत्वों में चिर स्थिर या स्थित कही जा सकती है या नहीं । आज की परिभाषाओं में भले ही अक्षरशः न मिलने के कारण इस देश की प्राचीन दार्शनिक व वैज्ञानिक धारणाओं से अनभिज्ञ वैज्ञानिक उन प्राचीन तत्वोपदेशों को 'स्वीकृत न कर पाते हों या उन उल्लेखों से आज की मान्यता का सामंजस्य स्थापित करने में उनकी मेधा लड़खड़ती या हिंचाकिचाती हो पर मनन करने वाले मनीषि से यह सत्य तिरोहित नहीं रह सकता कि प्रेरणा अथवा सहायता प्रदान करने वाली शक्तियों को पृथक तत्व मानने को धारणा असाधारण बुद्धि विकाश का परिचायक है।
यद्यपि उपरोक्त तुलना द्वारा धर्म अधर्म को Negative and positive charges के साथ मिलाने का प्रयास हम नहीं कर