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आधुनिक विज्ञान से तर्क वितर्क किया जाय, अन्यथा सुज्ञ को समझाने के लिये हमारे पास भारतीय विचारधाराओं से पर्याप्त बीज मन्त्र मिल सकते हैं ।
चेतन प्रेरणा शक्ति है, जड़ प्रेरित शक्ति - कर्य शक्ति, दोनों के संयोग बिना कार्य की या परिणाम की या प्रत्यक्षत्व की उत्पत्ति नहीं हो सकती । दोनों का अपना २ अपरिमेय महत्व है, दोनों पृथक २ संख्यातीत होते हुए भी द्वैधारिक अटूट नियम की कड़ी में पिरोये हुए हैं। कोई चेतन चेतनत्व के प्राण नियम ( अनुभव - बोध ) का उल्लंघन नहीं कर सकता, उसी तरह कोई अणु भी जड़ परिवर्तन नियम ( संश्लेषण विश्लेषण ) को अभी अतिक्रम नहीं कर पाता । एक ही स्थान एक ही परिस्थति में मानों एक ही रूप द्वारा अभिव्यक्ति पाते हुये भी चेतन व 'जड़ के द्विधा हैं, चेतन जड़ नहीं हो जाता जड़ कभी चेतन होता है। इनको एक मान लेना हीं भ्रांति है, अविवेक है, अज्ञान हैं एवं तदरूप व्यवहार करने पर ही अपने स्वरूप को खोकर भावमय चेतन दुख सुख के चक्र से मुक्त नहीं हो पाता ।
जड़ और चेतन को एक ही महान् शक्ति की उपज कहना और भी भ्रमात्मक है। ईश्वर की साकर या निराकार व्यक्ति - कल्पना से प्रभावित विचार श्रेणी का समर्थन करने वाले महानुभावों के लिये इसके अतिरिक्त चारा ही क्या है, क्योंकि युक्ति का श्राश्रयं उनके लिये संभव नहीं । जड़ जड है, चेतन चेतन, सूक्ष्म परिस्थतियों में दोनों के स्वरूप व कार्य का परिणाम इतना समान व सदृश होता है। कि सहसा पृथक्करण करना बुद्धि की पहुँच से बाहर की बात हो