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भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है। सचमुच चक्षु ग्राह्य होने के कारण प्रत्यक्ष को प्रमाण और प्रमाण को प्रत्यक्ष वनाने वाला एक द्रव्य है । यह चेतन का बाह्य स्वरूप व कार्य भी इसी के द्वारा अभिव्यक्त होता है। जड़ को क्षण मात्र के लिये इस व्योम से पृथक कर लिया जाय, तो सर्व शून्य हो जायगा । चेतन प्राण हैं। तो जड़ काया है इस जगत् की । जड़ के निमित्त बिना चेतन को कोई अयुत्त भाव स्पर्श नहीं कर सकता, अतः भाव विकार के अभाव में चेतन को स्वतः निजत्व ही में लवलीन रहना पड़ता, और ऐसा मानने पर उसके सक्रियत्त्व या सचेतनत्त्व तक में सदेह किया जा सकता | चेतन के ज्ञान का उद्देश्य ज्ञेय-भी यह जड़ है, क्योंकि इसी के साथ हिल मिल कर चेतन की क्रियाऐं होती हैं, परिवर्तन होता है, तभी पदार्थों की उत्पत्ति होती है और उन्हीं का ज्ञेय कहा जाता है, अवकाश देने वाले तृतीय द्रव्य आकाश की परिकल्पना भी तभी सार्थक है, एवं सब कुछ को अंकित करने वाले काल का महत्त्व भी इसी संयोग से है ।
चेतन व जड़ की अठखेलियां न हों तो काल किस की कहानी लिखे । अकेले चेतन या अकेले जड़ से परिपूर्णता नहीं होती । ये दो भाव पृथक हैं, इन्हें समझने के लिये दोनों को पृथक २ शक्तियां मान लेने की आवश्यकता है । आधुनिक अपरिपक्व बुद्धि काल्पनिकों ने ही जड़ की अन्त में चेतन रूप मानने के लिये प्रयुक्त अपरिपूर्ण तर्क उपस्थित किये हैं । चेतन चर्म चक्षु प्रत्यक्ष होता नहीं हो, नहीं हो सकता, बस इतने से ही अस्थिर हो वे चेतन का अस्तित्व मानने से भयभीत होते हैं । यहा प्रसङ्ग नहीं है कि