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( ४० ) जाती है. इतने से जो सो मान लेने को उद्यत हो जाना कहां तक उचित है यह विचारणीय है।
प्रदेश-जीव या आकाश जड़ के सूक्ष्मतम विभाग परमाणु का “प्रदेश के साथ सादृश्यत्व अत्यंत गहन मनोविचार की अपेक्षा रखता है जड़ के चार मूल गुण ( स्पर्श, रस, गंध, वर्ण) एवं पांचवां अत्यंत निकटवर्ती उत्तर गुण (शब्द ) सदा सर्वदा के लिये विज्ञान का बीज मन्त्र बने रहेंगे यह निस्सन्देह है, एवं ज्यों २ यांत्रिक व वैद्युतिक शोध के परिणाम स्वरूप आलोक पथ ( जड़ जगत के ) के आविष्कारों की उपलब्धि सार्थक होती जायगी, मानव विचार गवेषणा के सन्मुख महावीर का यह सत्य सदा स्पष्टतया प्रतिभासित होता रहेगा। परमाणु अविभाज्य है, अत्यंत सूक्ष्म चक्ष अग्राह्य होने पर भी गति स्थितिकी अन्यावाध शक्तियों से परिपूर्ण है उसका क्षुद्र कक्ष । गति ही शक्ति का बीज मन्त्र है, जहां स्थिति उसके सौम्यत्त्व या उपयोग का स्वरूप स्थिर करती है, यह थी उनकी दृढ़ व्याख्या दोनों स्वभावों का समर्थन करने के लिये।
पृथक परमाणु किस प्रकार व क्यों दूसरे से संलग्न हो स्कंध] बनता है-इसके बीज मन्त्र का दिग्दर्शन कराते हुये रुक्ष व स्निग्ध के अंतराल में रही हुई एकांश द्वितियांश की भेदरेखा के साथ जो वर्णन अपरिपूर्ण मात्रा में हमें उपलब्ध हुआ है, उसे ही देख कर महावीर के सत्य व ज्ञान की गहराई को यत्किंचित् मात्रा में मापने का अवसर मिलता है । परमाणु के चार मूल” गुणों में कितनों का किस मात्रा में सर्वदा विद्यमान रहना अनिवारा है।