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________________ ( १०० ) दिखायी देता है वह कतिपय स्वार्थी, प्रतिष्ठा लोभी स्खलितशक्ति आचार्यों की कृति का ही परिणाम है यह समझना चाहिये महावीर व उनके सच्चे अनुयायियों ने कभी स्खलन का पोषण नहीं किया कि वे तो सदा मत्य व युक्ति की उद्घोषणा स्पष्ट शब्दों में अपने २ समय में करते रहे हैं। जैन सस्कृति ने सदा अब श्रद्धा पर कुठाराघात किया, असमानता के बीजों को समाज व संस्कारों से उखाड़ने का प्रयत्न किया, आत्मा व जड़ अतः आध्यात्मिक व भौतिक विकास की पृथक २ महत्ता का दिग्दर्शन कराया, आंतरिक भावों का सुस्पष्ट वर्गीकरण किया व उर्ध्व या अधः लेजाने वाली भावनाओं के क्रम को शब्दों में अभिव्यक्त करने में सफलता पायी, विज्ञान के भिन्न २ पत्रों का अनुशरण करने को पद्धति बतायी व तद् हेतु विषय निर्णय किया, जीव जड़ के सम्बन्ध व आपस में एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों से होने वाले वैचित्र्यका वर्णन किया, जगत् के व्यवहार को निभाने के लिये आवश्यक मूल शक्तियों की विशेषताओं को समझाया, व्यवहार की मुलाधार द्वितीय शक्ति जड़ के सूक्ष्मातिसूक्ष्म विभागों का नामोल्लेख कर उनकी कार्य पद्धति को स्पष्ट किया, पदार्थों के कार्य व कारण की सम्बन्ध धारा का स्वरूप बताया, भिन्न २ बौद्धिक प्रयोगों द्वारा सम्भव हो सकने वाले परिणामों की विधि का उल्लेख किया, जड़ की साँयोगिक, संश्लेषण व विश्लेषण प्रक्रिया द्वारा दृश्यमान पदार्थों की उत्पत्ति का क्रम बताया, ज्ञान व उसके उपयोगको मानवका चरम प्राप्य व ध्येय माना,
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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