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________________ रहा है । एक ओर तो रूढ़िग्रस्त मुग्धों का उपासक वर्ग जिनकी सख्या अधिक होने के कारण साधु इनपर अपना सिक्का जमा, बड़े मौज सौख से नीति व चरित्रका गला घोंटता है, दूसरी ओर है पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त-युक्त धार्मिक संस्कृति से अनभिज्ञ नयी राजनीति के उच्छिष्ट अंग की तरह स्वार्थी पदलोलुपी सुधारक वर्ग जो अपनी सत्ता जमाने के लिये अनुपयुक्त वातावरण का निर्माण करने के हेतु समुदाय को अनिश्चित दिशा की ओर धकेलना चाहता है । वास्तव में अन्धविश्वास, मूर्खता, अशिज्ञा, अयोग्यता क्रमशः संकीर्ण नैतिकता अतः अनीति ने जैन समाज के गृहस्थ-स्त्री पुरुष दोनों को पूर्णतया फँसा रखा है और वे कुटिलवृत्ति चतुर धूतों के कुचक्र मे पड़ अपने चरित्र व सभ्यता को लुटा रहे हैं। ___ हमारा यह सुनिश्चित परामर्श है कि साधु व उपासक दोनों वर्गों की नये सिरे से महावीर के उत्तम उपदेशों के आधार पर रचना की जाय ताकि आधुनिक विज्ञान युग के साधनों का सदुपयोग करते हुए समाज सभ्यता व अध्यात्म के ध्येय की ओर बढ़े सके। ईस संस्कृति ने सत्य का अनुबान, सत्य का निर्णय एवं उसका व्यावहारिक व आध्यात्मिक उपयोग व विकास करने के लिये हर परिस्थिति में युक्ति के बीज मत्र का प्रचुरता से उपयोग किया है पर किसी भी कारण वा अवस्था मे अनुपयुक्त अनुचित पद्धति का आविष्कार कर के मानव को उत्पनं पथ्र से पीछ नहीं धकेला। जहां कहीं भी किसी को असामंजस्य
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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