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प्रमाणवाद
१६९ क्योंकि पानी में उसका प्रतिम्बिय मालम हो रहा है। कृत्तिका नक्षत्रका उदय हुआ है अतः अब शकट नक्षत्रका भी उदय होना चाहिये । एक प्रामके पेड़पर मौर-फल आया हुआ है इस लिये अब इस प्रकार प्रत्येक प्रामके पेड़को भी फूल आने चाहिये । चन्द्रमा उदय हुआ है अतः समुद्र उछलता होना चाहिये। सूर्थका उदय हुमा है अतः कमल खिले हुये होने चाहिये । वहाँपर हम है अतः उसकी छाया भो होनी चाहिये । इत्यादि और भी अनेक अनुमानों में जो जो हेतु बतलाये हैं उनमेका एक भी हेतु पक्षम नहीं रहता तथापि उन अनुमानों का एक भी अनुमान असत्य या अप्रामाणिक नहीं है। इस लिये जैनोंका पतलाया हुमा उपरोक्त हेतुका स्वरूप यथार्थ है। जो स्वरुप दूसरे बतलाते हैं.वह दुरगा ग्रस्त होनेसे यथार्थ नहीं हैं । कदाचित् कोई यह कद्दे उपरोक्त प्रत्येक अनुमानका हेतु कालादिक पक्षमें रहा हुशा है, तो यह कथन भी ठीक नहीं। क्योंकि उन अनुमानोंमें बतलाये हुए हेतु और फाल इन दोनों में किसी प्रकारका सम्बन्ध नहीं है
और जो दो पदार्थ परस्पर किसी तरहका सम्बन्ध न रखते हो उन दोनों पक्ष और हेतुका सम्बन्ध घटित नहीं हो सकता तथापि यदि वे परस्पर सम्बन्धरहित उन दो पदार्थोमे भी पक्ष
और दंतुका व्यवहार घटता दुया मानते हैं, तो 'कौवा काला है अतः शब्द अनित्य होना चाहिये।' यह अनुमान भी लत्य ठहरना चाहिये, क्योंकि इस अनुमानमें कालेके ही समान लोकको भी पक्षतया माना जा सकता है। यथा ऐसे भी कितने एक सत्य अनु. मान हैं कि जिनका हेतु समक्षमें नहीं रहता तथापि वे सुहेतु होते हैं । जैसे कि 'शब्द अनित्य हे' क्योंकि वह सुना जा सकता है। वहाँपर मेरा भाई होना चाहिये, क्योंकि उसके विना ऐसा आवाज नहीं सुना जाता । सब नित्यरूप या अनित्यरूप होना चाहिये क्योकि यह सट्टप है। ये समस्त अनुमान सत्य और प्रामाणिक है तथापि उनमें बतलाये हुये हेतु सपक्षमें न रहनेके कारण दूसरॉके बतलाते हुए हेतुके पूर्वोक्त तीनों लक्षण यथार्थ नहीं हैं इतना ही नहीं बल्कि प्रत्युत पणवाले हैं । इस प्रकार अनुमानका