________________
स्त्री मोक्षवाद
माना जाय? यदि आप यह कहेंगे कि वस्त्रको स्पर्श करने मापसे ही वह परिप्रहरूप हो जाता है तो यह कथन ठीक नहीं है । यदि ऐसा ही हो तो सक्त ठंडीमें ध्यान धरते हुए किसी साधुको देखकर आज बड़ी ठंडी पड़ती है ऐसा समझकर कोई भक्तजन उस साधुको कुछ कपड़ा प्रोढ़ा देतो वह निस्पृही साधु भी परिग्रहवाला होना चाहिये। यदि वस्त्रको स्पर्श करने मात्रसे ही वह परिग्रहरूप हो जाता हो तो निरन्तर जमीनपर चलनेसे वह भी परित्रहरूप होनी चाहिये और यदि ऐसा हो तो तीर्थंकर वगैरहका मोक्ष किस तरह हो सकेगा? कदाचित् यह कहा जाय कि वस्त्र में जीवकी उत्पात्त होती है अतः वह परिग्रहरूप है तो फिर शरीरमें दूसरे जीवोंकी याने कृमि कीट वगैरहकी उत्पत्ति होती है अतः शरीरको भी परिप्रहरूप मानना चाहिये । कदाचित् यों कहा जाय कि शरीरमें अन्य जीवोंकी उत्पत्ति होती है यह बात सही है परन्तु उनकी यंतना की जाती होनेके कारण शरीर परिग्रहरूप नहीं माना जा सकता, तो फिर वस्त्र में भी उत्पन्न होते हुये जूं वगैरह जीवोंकी यतना की जाती होनेके कारण तथा उस वस्त्रको यतनापूर्वक सीने एवं धोनेसे जीवकी उत्पत्ति मिट जाती है, इसलिये उसे भी शरीरके समान ही अपरिग्रहरूप मानना चाहिये। इसलिये वस्त्र होनेपर भी चारित्रको किसी प्रकारका वाध न यानेके कारण वस्त्रकी विद्यमानताके साथ चारित्रकी विद्यमानता मानने में कोई दुपण सालूल नहीं देता। यदि आप यह कहेंगे कि स्त्रियों में शक्ति नहीं है अतः वे चारित्रको नहीं पाल सकती. तो आपका यह कथन भी उचित नहीं है। क्योंकि अनेक खियाँ ऐसी हैं कि जो कठिनसे कठिन बत पाल सकती हैं और कठिनसे कठिन तप तप सकती हैं अतः यह नहीं कहा जा सकता कि उनमें चारित्र पालन करनेकी शक्ति नहीं । अर्थात् स्त्रियों में चारित्र नहीं होता इसलिये वे मोक्ष प्राप्त करने में योग्य नहीं हो सकतीं यह कथन सर्वथा असत्य है । यदि आप यो कहे कि त्रियों में चारित्र भले ही हो परन्तु उनमें सर्वोच-यथाख्यात नामक चारित्र नहीं होता इसीसे वे पुरुपसे हीन होती हैं । इस विषयमें