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जैन दर्शन
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हम यह पूछ सकते हैं कि उनमें जो सर्वोच्च यथाख्यात नामक चारित्र. नहीं उसका क्या कारण है ? क्या स्त्रियोंके पास उस प्रकारका चारित्र प्राप्त करनेकी सामग्री नहीं है: ? या उस चारित्रके साथ स्त्रियोंका विरोध है ? उस प्रकारका उच्च चारित्र प्राप्त करनेका कारण एक तरहका उनका अभ्यास है और वह अभ्यास ( तप तपना और व्रत पालन करना ) स्त्रियों में भी है ऐसा हम पहले ही कह चुके हैं अतः उस प्रकारका चारित्र प्राप्त करनेकी सामग्री स्त्रियों के पास नहीं है यह कथन सर्वथा असत्य है । यदि प्राप यो कहेंगे कि उस तरहके उच्च चारित्र के साथ स्त्रियोंका विरोध है तो यह कथन भी अनुचित है, क्योंकि वह यथास्यात नामक चारित्र 'हमारे जैसे नवीन मनुष्योंकी बुद्धिमें नहीं आ सकता, अतः उसके साथ स्त्रियोंका विरोध है यह किस तरह जाना जाय ? अर्थात् चारित्र न होनेसे स्त्रियाँ हीन हैं यह बात सर्वथा असत्य है । यदि यों कहा जाय कि स्त्रियोंमें अमुक तरहका विशेष बन नहीं है, तो वह वल, किस प्रकारका नहीं ? यह भी बतलाना चाहिये ।. क्या स्त्रियोंमें सातवीं नरकमें जानेकी शक्ति नहीं यह ? या स्त्रियाँ वाद वगैरह नहीं कर सकतीं यह ? वा स्त्रियाँ कम पढ़ी हुई होती हैं यह ? इन तीनोंमें से यदि प्रथम पक्षको मंजूर किया जाय तो हम यह पूछते हैं कि सांतवीं नरकमें जानेका सामर्थ्य स्त्रियोंमें कब होना चाहिये ? - जिस जन्ममें मोक्षमें जाना हो उसी जन्ममें होना चाहिये या चाहे जब होना चाहिये ? यदि यह कहा जाय कि जिस जन्ममें मोक्ष जाना हो उसी जन्ममें वह सामर्थ्य होना चाहिये । तो फिर पुरुषोंका भी मोक्ष न होना चाहिये, क्योंकि पुरुषोंमें भी जिस जन्म मुक्ति प्राप्त करनेकी हो उसी जन्ममें सातवीं नरकमें जानेका सामर्थ्य नहीं होता । अतः एक ही जन्ममें मोक्ष और सातवीं नरकमें जानेके सामर्थ्यका होना मानना यह युक्तियुक्त नहीं । अव यदि यों कहा जाय कि कभी भी सातवीं नरक जानेका सामर्थ्य होना चाहिये, अर्थात् उच्चमे उच्च स्थानकी प्राप्ति उच्चमें उच्च परिणाम द्वारा हो सकती है और - उसमें उच्चमें उच्च दो स्थान हैं । एक तो तमाम दुःखोंका स्थान
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