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जैन दर्शन
हुई वस्तुको भी याद नहीं कर सकतें। इससे यो कैसे कहा जाय कि वह वस्तु ही नहीं ? ऐसे ही मूर्खताके कारण हम किसी सत्य हकीकतको भी नहीं जान सकते इससे यह नहीं कहा जा सकता कि वह सत्य हकीकत ही नहीं। '७ विशेष तेजवाले पदार्थोकी विद्यमानतामें कम तेजवाले पदार्थ ड़क जानेके कारण हम उन्हें देख नहीं सकते। जैसे कि सूर्यफी विद्यमानतामें तारा और ग्रहोंको कोई नहीं देख सकता । तथा अन्धकारके लिए कमरे में पड़े हुए पदार्थ भी नहीं देख सकते इससे यह नहीं कहा जा सकता कि अन्धकारमें कोई पदार्थ ही नहीं। '
८कितनी एक दफा एक समानताके कारण हम स्वयं वस्तु समूहमें डालकर उस वस्तुको नहीं पहचान सकते, उड़दकी राशीमें उड़दकी एक मुट्ठी भरकर डाल दिये वाद और तिलोके ढेरमें एक मुट्ठी तिलकी डाल देने बाद हमसे वह मुठीभर डाले दुये दाने जुदे नहीं पहचाने जा सकते, इससे यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें मुट्ठी भरकर हमने दाने डाले ही नहीं। पानीके कुन्डमें नमक या मिस्त्री डाले वाद वह उसमें धुल जाती है अतः हम उसे पीछे निकाल नहीं सकते, इससे कोई यह नहीं कह सकता कि, कुन्ड में नमक या मिस्त्री डाली ही न थी। इस तरह यहाँपर कथन किये मुजब विधमानवस्तु भी न मालूम देनेके ये आठ कारण हैं । ये आठो कारण साँख्यमतमें भी बतलाये हैं। अर्थात् जिस प्रकार विद्यमान वस्तु भी इन आठ कारणोंके लिये मालूम नहीं हो सकती उसी प्रकार धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय वगैरह विद्यमान होते हुए भी स्वभावके कारण मालम . नहीं देते यह मान्यता उचित है, परन्तु उसका अस्तित्व ही नहीं ऐसा कहना उचित नहीं।
.. अब यदि यों कहा जाय कि जो वस्तु किसी कारणके लिये हमसे नहीं जानी जाती वह भी किसी न किसीके जाननेमें या देखने में भाई होती है किन्तु यह धर्मास्तिकाय वगैरहको तो किसीने भी जाना या देखा नहीं, अतः उसकी विद्यमानता किस तरह मानी जाय ? इस प्रश्नका उत्तर इस प्रकार है-जिस तरह विद्यमान होते .