________________
जैन दर्शन
करते हुये जीव और पुग्दलको सहायक होनेके कारण उनका उपकारी है। अर्थात् यह भाव जीव और पुग्दनकी गतिका अपेक्षा कारण है। कारण तीन प्रकारके होते हैं और उनका स्वरूप इस प्रकार है- १परिणामी कारण,२निमित्त कारण, ३निर्वर्तक कारण।
घटका परिणामी कारण मट्टी है, क्योंकि मट्टी स्वयं ही घटके श्राकारमें परिणत होती है-बदल जाती है । घटका निमित्त कारण दण्ड और चाक वगैरह हैं, क्योंकि इन निमित्तोंके सिवाय घड़ेको बनाया नहीं जा सकता और कुम्भार स्वयं घटका पैदा करनेवाला होनेसे निर्वतक कारण है । अन्य ग्रन्थमें भी कारणोंकी व्याख्या इसी प्रकार लिखी है। जैसे कि 'घटका निर्वतक कारण कुम्भार है, घटका निमित्त कारण उसका चाक है और घटका परिणामी कारण मट्टी है। इस प्रकार कारण मात्रके तीन भाग हो सकते हैं" इनमेके निमित्त कारणके जो दो भाग हैं वे इस प्रकार हैं-एक निमित्त कारण और दूसरा अपेक्षा कारण । संसारमें देख पड़ती समस्त क्रियायें दो प्रकारकी हैं। एक प्रायोगीकी और दूसरी वैनसीकी । जिस क्रियाको करते हुये किसी प्रकारका प्रयोग करना पड़ता है उसे प्रायोगीकी क्रिया कहते हैं और जिस क्रियाके होने किसीप्रकारके मानवी प्रयोगोंकी जरूरत न पड़े उसे वैस्रसीकी क्रिया कहते हैं। जिन साधिनों में ये दोनों प्रकारकी क्रियायें होती हो उसका नाम निमित्त कारण है और उन निमित्त कारणों में जो असाधारण निमित्त है उसका नाम अपेक्षा कारण है । चाक और उसे घुमानेकी लकड़ी इन सबमें पूर्वोक्त दोनों प्रकारकी क्रियायें होती हैं अतः चाक वगैरह घटके निमित्त कारण हैं और धर्मास्तिकाय . वगैरहमें मात्र एक वैनसीकी क्रिया होती है । इस लिये वह निमित्त कारण तो है परन्तु वह (धर्मास्तिकाय और अधर्मास्ति: काय वगैरह ) असाधारण निमित्त कारण होनेसे उनकी विशेषता बतलानेके लिये उन्हें अपेक्षा कारण कहा गया है । धर्मास्तिकाय
और अधर्मास्तिकाय वगैरह असाधारण निमित्त कारण है उसका हेतु यह है कि इनमें (धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय आदिमें रहा हुआ क्रियाका परिणाम जीव और अजीवकी गति वगैरहके