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________________ जैन दर्शन में आचार मीमांसा १३७ तत्त्व है। जाति और रंग-रूप-ये पौद्गलिक हैं | सजातीय की उपेक्षा कर विजातीय को महत्त्व देना प्रमाद है। चक्षुष्मन् ! तू देख, जो प्रमादी हैं वे स्वतन्त्रता से कोसो दूर हैं। १ । प्रमादी को चारो ओर से डर ही डर लगता है। अप्रमादी को कही भी डर नहीं दीखता४२। ___जहाँ जाति, कुल, रंग-रूप, शक्ति, ऐश्वर्य, अधिकार, विद्या और तपस्या का गर्व है वहाँ आत्मा का तिरस्कार है। आत्मा का सम्मान करनेवाला ही नम्र होता है। वह ऊँचा उठता है । पुद्गल का सम्मान करनेवाला उद्धत है, वह नीचे जाता है ४४ । आत्मा का सर्व-सम-सत्ता को सम्मान देनेवाला ही लोक-विजेता बन सकता है। वस्तु-सत्य भगवान् महावीर ने कहा—जो है उसे मिटाने की मत सोचो। तुम्हारा अस्तित्व तुम्हें प्यारा है, उनका अस्तित्व उन्हे प्यारा है। जो नहीं है, उसे बनाने की मत सोचो। डोरी को इस प्रकार खीचो कि गांठ न पड़े। मनुष्य को इस प्रकार चलायो कि लड़ाई न हो। वालो को इस प्रकार संवारो कि उलझन न बने । विचारो को इस प्रकार ढालो कि भिड़न्त न हो। तात्पर्य की भाषा में आक्षेप और आक्रमण की नीति मत बरतो। उससे गांठ घुलती है, युद्ध छिड़ते हैं, वाल उलझते हैं और चिनगारियाँ उछलती है। भगवान् ने कहा-आक्षेप-नीति के पीछे यथार्थ-दृष्टिकोण और तटस्थभाव नहीं होता, इसलिए वह आग्रह, दुर्नय और एकान्त की नीति है। आक्षेप को छोड़ो, सत्य उतर आएगा। भगवान् ने कहा-एक ओर यह अखण्ड विश्व की अविभक्त-सत्ता है और दूसरी ओर यह खण्ड का चरम रूप व्यक्ति है। व्यक्ति का आक्षेप करनेवाली सत्ता और सत्ता का आक्षेप करनेवाला व्यक्ति-दोनो भटके हुए हैं। सत्ता का स्त्र व्यक्ति है। व्यक्ति की विशाल शृङ्खला सत्ता है। सापेक्षता में दोनों का रूप निखर उठता है।
SR No.010216
Book TitleJain Darshan me Achar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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