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________________ पृथ्वी के चारों ओर जो वायुमण्डल है उसकी ऊंचाई २०० मील अनुमान की जाती है। उमको चार खण्डों में विभाजित किया गया है, जिनके नाम हैं : (१) ट्रोपोस्फियर (Tropo phere) (२) स्ट्रटोस्फियर (Stratosphere), (३) प्रोजोनोस्फियर (Cz[ 10:phere) और (८) प्रायनोस्फियर (Ionosphere). प्रत्येक स्तर की कुछ विगेपनायें हैं । प्रथम स्तर की ऊँचाई लगभग : मील है। इमी म्तर के अन्तर्गत बादल उत्पन्न होते हैं और इगी म्नर के अन्तर्गत जो परिवर्तन होते हैं उनका हमारे मौसम पर प्रभाव पड़ता है। भूमध्य रेखा के ऊपर लगभग ११ मील की ऊंचाई तक और ध्रवो के ऊपर लगभग ४ मील की ऊँचाई तक नाप (Temperature) निरन्तर कम होता जाता है और जहाँ प्रथम म्नर की मीमा का अन्त होता है और द्वितीय स्तर प्रारम्भ होता है, वहाँ का ताप शून्यसे ५५ डिग्री सेन्टीग्रेड कम ( - 55°C) है । इस गीत का अनुमान केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि पानीका तो कहना ही क्या, पाग भी इस मग्दी में जम कर ठोम पत्थर हो जाता है। प्रकृति की इस विलक्षणता पर प्रारचयं होता है। कहाँ तो पृथ्वी के गर्भ में लोहे को भी गला देने वाली हजारों डिग्री सेन्टीग्रेड की उष्णता और कहां टीक उमी के ऊपर धरातल से ११ मील की ऊँचाई पर पारे को भी जमा देने वाली भयंकर सर्दी । इन पंक्तियों को पढ़कर स्वर्गीय
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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