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________________ ११. स्वर्ग और नरक जैन शास्त्रों में स्वर्ग और नरक का बड़ा विपद और अद्भुत वर्णन पाया जाता है। अतएव पढ़े लिखों के मन में यह सन्देह होना स्वाभाविक ही है कि क्या वास्तव में इस धग पर, इमके भीतर अथवा इसमे बाहर ऐसे स्थानों का होना सम्भव है। बौद्ध-जातक में एक इस प्रकार की कथा आती है कि एक बार भिग्रो ने महात्मा गौतम बुद्ध से पूछा कि हे भगवन स्वर्ग और नरक नाम के जो स्थान हैं, उनका समुचित विवेचन करो। महात्मा बुद्ध ने तुरन्त पूछा कि यह प्रश्न तुम्हारे मन में कैसे उत्पन्न हया । भिक्षुमो ने उत्तर दिया कि श्रवण महावीर ऐमा उपदेश दे रहे हैं। महात्मा बुद्ध ने पुनः कहा कि मै तुम से एक प्रश्न पूछता हूं कि क्या तुम्हें इममें सन्देह है कि सत्कर्मो का फल अच्छा और दुश्कर्मो का फल बुरा होता है ? सबने तुरन्त उत्तर दिया, महाप्रभो! हमे इसमें कोई संदेह नहीं है । महात्मा बुद्ध तुरन्त बोले, तो जामो यदि कही स्वर्ग होगा और अच्छे कर्म करने से स्वर्ग मिलता है, तो तुम्हें भी मिल जायगा। तुम इस चिन्ता में मत पड़ो कि कही स्वर्ग है या नही। इसी प्रकार नरक के बारे में भी समझो । ___इस विज्ञान के युग में यह जिजामा और भी अधिक बढ़ गई है और माइंस ने इम विषय में जो बातें ज्ञात की हैं, उसका कुछ विवरण निम्न पंक्तियों में दिया जाता है
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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