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________________ ่ छट्टाला की निम्न पंक्तियाँ याद आ गर्दी गर्मी का वर्णन करते हुये उन्होंने लोह गल जाय, ऐसी शीत उष्णता इतनी गर्मी और टण्ड है कि मेरु पिण्ड उन तापक्रमों पर गल जाता है अथवा बिखर जाता है ( यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि अत्यधिक ठण्ड पाने पर लोहा कॉच के समान जाता है। हाथ से गिरा कि चकनाचूर ) कुरमुरा हो पं० दौलतराम जी की जाती है। नरकों की लिखा है : "मेरु समान थाय ।" अर्थात् नरकों में पर्वत के साइज का लोह प्रथम स्तर से द्वितीय स्तर में प्रवेश करते ही ताप वा गिरना बन्द हो जाता है और लगभग २३ मील की ऊँचाई तक ताप मे कोई परिवर्तन नही पाया जाना यह व्योम वा वैकुण्ड स्थान है न तूफान, न आँधी, न बादल, न पानी, न धुल न मिट्टी । इसी का नाम स्ट्रैटो फयर है । इसके अनन्तर ताप नै शनै वढना जाता है और जिस भाग को स्ट्रैटस्कियर कहते हैं, वहाँ १२ महीने बसन्त ऋतु रहती है । उसके पश्चात् २३ और ३७ मील के बीच मे ग्रोजोनोस्फियर नाम का तीसरा खण्ड माना है । इस सण्ड में तापमान १००० डिग्री सेन्टीग्रेड है और इसमें ओजोन नाम की दुर्गधणं गैम भरी हुई है - इतनी दुर्गन्धपूर्ण कि जिसमे न कोई मनुष्य माम ले सकता है और न उसके पास खडा ही रह सकता है। नरकों के वर्णन में दौलतराम जी की ये पनिया फिर बाद करिये - तहाँ राध शोणित बाहिनी, वृमि कुलवलित देहदाहिनी ।" नरकों की जो तीन बिशेषना बनाई गई हैं(१) घोर अन्धकार ( २ ) महा दुर्गन्ध, (३) महान उष्णता । 1
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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