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________________ यदि वर्षा की ऋतु हो तो जो आटा उपयोग में लाया जावे वह ३ दिन से अधिक का पिसा हुआ नही होना चाहिये। यदि ग्रीष्म ऋतु हो तो यह अवधि ५ दिन है और शीत ऋतु में इसकी अवधि ७ दिन बनलाई गई है। जिस प्रकार प्रापने सुना होगा कि डाक्टरों द्वारा लगाये जाने वाले प्रत्येक इन्जेक्शन की अवधि होती है और जिस इन्जेक्शन की अवधि बीत चुकी हो उसको लगाने से लाभ के बजाय हानि ही होती है और वह सर्वथा त्याज्य है। ठीक उमी प्रकार ऋतु के अनुसार अवधि बीते हुये आटे की रोटी स्वास्थ्य को हानि ही पहुंचानी है, कारण यह कि उसमें दुगंध आने लगती है। यह तो हुई हाथ के पिसे आटे की बात । बिजली की चक्की में गेहूँ के दाने की जो दुर्गति होती है वह दो कारणों से होती है-(१) अधिक ताप और (२) अधिक दबाव । गेहूँ के दाने के अन्दर गेहूं का बीज होता है जिसे अंग्रेजी में गेहूं का बीज (Wheat germ) कहते हैं । इस बीज के अन्दर ठीक उसी तरह तेल भरा रहता है जैसे तिल के दानों में भरा रहता है। इस तेल को गेहूं के बीज का तेल (IWheat germ oil) या विटामिन 'E' कहते हैं। बिजलो को चक्की के पाटों के बीच में दबाव अत्यधिक होने के कारण गेहूँ के प्रत्येक दाने के अन्दर ये बीज पूट जाते हैं और उनसे निकले हुये तेल में आटा सन जाता है । हाथ के पिसे हुये आटे में ये सब क्रियायें नही होती, अर्थात् गेहूं का विटामिन •E नष्ट नहीं होता। आपने अनुभव किया होगा कि हाथ की चक्की से पिसे
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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