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________________ ६. हमारा भोजन 'शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् ।' धर्म सेवन करने के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहे । रोगी मनुष्य का मन धर्मध्यान में नही लगता । किसी कवि ने ठीक ही कहा है : पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुग्व जो घर में माया । रोगी मनुष्य के पाम कितना ही धन वैभव क्यों न हो, वह उसका उपभोग नहीं कर सकता। अतएव यदि हम नरभव का पूर्ण लाभ उठाना चाहते हैं तो हमें अपने शरीर को आरोग्य रखना पड़ेगा। शरीर की ग्रारोग्यता हमारे भोजन पर निर्भर करती है। स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिये भोजन एक महत्वपूर्ण अंग है। भोजन के मुख्य भाग हैं :-पाटा, चावल, दाल, गाक, शक्कर और घी। अब हम इन सब चीजों पर एक-एक करके विचार करते १. ग्राटा प्राटा मुख्यतः गेहूं का होता है। यह प्राटा पहले हाथ की चक्की या पनचक्की से तैयार किया जाता था और प्राज अधिकांशतः बिजली की चक्की से तैयार होता है। हाथ की चक्की या पनचक्की से पिसा हुया पाटा सम्पूर्ण रूप से निर्दोष होता है फिर भी जनशास्त्रों में इसकी भी एक मर्यादा कायम की गई है।
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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