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________________ ४. अधर्मास्तिकाय अधर्म द्रव्य (Merlium of Rest or Field of force) यह भी एक निष्क्रिय अरूपी पदार्थ है जो समस्त विश्व के कण कण में व्याप्त है । यह दृश्यमान जगत का मूल कारण है। यदि यह द्रव्य नहीं होता तो अखिल ब्रह्माण्ड, उस रूप में नहीं होता जिस रूप में वह आज दिखाई देता है । इसी माध्यम में होकर आधुनिक विज्ञान के गुरुत्वाकर्षण व विद्युत-चुम्बकीय शक्तियां (forces of Gravitation and Electro Magnetism) काम करते हैं। सर आइजक न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त जगत विख्यात है जो उसने १७वीं शताब्दि के मध्य में दिया था और जिसका विवरण न्यूटन से ६०० वर्ष पहले भास्कराचार्य ने अपने सूर्य सिद्धान्त में किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार पुद्गल का एक पिण्ड पुद्गल के दूसरे पिण्ड को अपनी ओर आकर्षित करता है और यह अाकर्षण परम्पर दूरी के अनुसार बदलता रहता है। दूरी के दूना हो जाने पर आकर्षण बल एक चौथाई रह जाता है । इसी आकर्षण बल के आधार पर सौर-मण्डल के सब ग्रह आकाश में स्थित रहते हैं। पिण्डों की परस्पर दूरी जब बहुत ही कम रह जाती है या बहुत अधिक हो जाती है तो यह आकर्षण अपकर्षण में बदल जाता है । पुद्गल का प्रत्येक पिण्ड अणुओं का समूह है। प्रत्येक अणु के गर्भ में विद्युत के धन और ऋणकण, जिन्हें
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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