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मजबूत । ऐसे परस्पर विरोधी गुण वज्ञानिकों के ईथर में पाये जाते हैं और चूकि प्रयोगों द्वारा वे उसके अस्तित्व को सिद्ध नहीं कर सके हैं इसलिये आवश्यकतानुसार वे कभी उसके अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं और कभी इन्कार । वास्तविकता यही है जो जैनागम में बतलाई गई है कि ईथर एक अरूपी द्रव्य है जो ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में समाया हुआ है और जिसमें से होकर जीव और पुद्गल का गमन होता है । यह ईथर द्रव्य प्रेरणात्मक नहीं है, याने किसी जीव या पुद्गल को चलने की प्रेरणा नहीं करता वरन् स्वयं चलने वाले जीव या पुद्गल की गति में सहायक हो जाता है, जैसे ऐञ्जिन के चलने में रेल की पटरी (लाइनें) सहायक हैं। इस द्रव्य के बिना किसी द्रव्य की गति सम्भव नहीं है।