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________________ MURANIUM ANIUM S RADIUM LEAD करती है। रेडियम को एक डली का आधा भाग लगभग ६ हजार वर्षों में शीशे में परिवर्तित हो जाता है । (देखो चित्र न० ३) इस प्रक्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम १८६४ में एक वैज्ञानिक बैकरल (Becquerel) ने किया। पुद्गल की इस चित्र में दिखाया गया है कि यूरेनियम नामक धातु में कुछ बों तक विकिरण होने के पश्चात वह रेडियम में परिवर्तित हो जाती है और फिर रेडियम शीशे में परिवर्तित हो जाता है । चित्र से यह भी विदित होता है कि यूरेनियम-रेडियम में परिवर्तित होने के पश्चात उसकी मात्रा कम हो जातो है और इसो प्रकार रेडियम के शीशे में बदलने पर चित्र नं. ३ होता है। इसका कारण यह है कि यूरेनियम अथवा रेडियम में से जो किरण अबाध गति से निकलती रहती हैं वह भी पुदगल का स्वरूप हैं । दृष्टि से यह एक विलक्षण बात है। यूरेनियम, रेडियम पोर शीशा ये तीनों तत्त्व एक दूसरे से बिलकुल भिन्न तत्त्व हैं। रेडियम की कीमत लाखों रुपये तोला है और शीशे की कीमत ५-६ रुपये सेर है। प्रकृति बतला रही है कि संसार में जितने द्रव्य हैं, ये पुद्गल की भिन्न-भिन्न पर्यायें हैं और कुछ पर्यायें ऐसी हैं जो स्वयं बिना प्रयास ही एक से दूसरे रूप में बदल रही है । पुद्गल शब्द की उपयोगिता और यथार्थता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है, जो जैन तीर्थकरों ने अपनी दिव्य वाणी द्वारा हमको बतलाया है ।
SR No.010215
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherG R Jain
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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