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है उसे वह छिपाता नहीं है। अपनी खोज को वह सबके सामने प्रकट कर देता है जिससे कहीं कोई त्रुटि हो तो वह निकल जाय । अपनी कमजोरी को वह स्वीकार करने में हिचकता नहीं। पुनः दूगरा वैज्ञानिक उस खोज को अपने अनुभव के आधार पर आगे बढ़ाता है और इस तरह विज्ञान के क्षेत्र में सत्य क्या है. इस बात की कोशिश बराबर होती रहती है । जो कुछ अाँख से या यंत्रों के जरिये देखा जाता है उमका समाधान ढूढा जाता है । यदि सत्य को पाने में पुराने सिद्धान्त बाधक बनते हैं तो उनके स्थान पर अन्य नये सिद्धांतों की प्रतिष्ठा होती है । इमलिये किसी एक मिद्धान्त पर अड़े रहना विज्ञान का काम नहीं किन्तु धर्म के विषय में इससे भिन्न बात है । जैनधर्म में यह दावा किया गया है कि उसका ज्ञान सम्पूर्ण है और काल भेद से अपरिवर्तनीय है। वैज्ञानिक किसी धर्म ग्रन्थ या शास्त्र से जुड़ा नहीं होता। उसकी खज से यदि किसी धर्म ग्रन्थ में वर्णित किसी सिद्धांत का व्याघात हो तो वह उसकी कतई परवाह नहीं करता। उदाहरणार्थ बाइबिल (l'ible) में यह बताया गया है कि यह पृथ्वी ६ हजार वर्ष पुगनी है किन्तु जब वैज्ञानिकों ने किमी शिला या चट्टान को यह कहकर बताया कि वह ५० हजार वर्ष पुरानी है तो यह बात वाइबिल के खिलाफ हो गई । इसीलिये धर्म ग्रन्थ पर विश्वास करने वाले पुगने रूढ़िवादी लोग यदि उस वैज्ञानिक को नाना तरह के त्रास और यातनाएं देकर सत्पथ से विचलित करना चाहें तो वह सत्य बात को कहने में नहीं चूकता । यही कारण है कि जहाँ