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से देखने का तो प्रश्न ही नहीं है । इससे यह बात तय होनी है कि रूपी पदार्थ होने के कारण आत्मा की नाप-तौल नहीं हो सकती और इमीलिये उसका अध्ययन या उसके अस्तित्त्व को सिद्ध करना विज्ञान के क्षेत्र से बाहर है
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विज्ञान का दूसरा अर्थ होता है 'तर्कपूर्ण ज्ञान ।' यदि देखा जाय तो मालूम होगा कि विज्ञान के क्षेत्र में पक्षपात या संकीर्णता नाम की कोई चीज नहीं है । जो बान तर्कसंगत होती है उसको ग्रहण कर लिया जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह 'हरिभद्र सूरि' के निम्न वाक्य से प्रकट होता है
पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ विज्ञान की तीसरी परिभाषा इस प्रकार है
Science is a series of approximations to the truth अर्थात सत्य को खोजने वाला व्यक्ति शनैः शनैः एकएक सीढ़ी पार करके सत्य को ढूंढने का प्रयास करता है । दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि आज का वैज्ञानिक सत्य के निकटतम पहुंचने का प्रयास करता हुआ चलता है और किसी भी स्टेज पर पहुंचकर वह यह दावा नहीं करता कि उसे उस विषय के सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई है ।
वास्तव में यदि देखा जाय तो विज्ञान के सिद्धान्त कोई अन्तिम नहीं हैं । वे समय-समय पर बदलते रहते हैं; उनमे स्थायित्व नहीं होता । एक वैज्ञानिक जिस सत्य पर पहुंचता