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जैनधर्म में एक श्रद्धालु व्यक्ति अपने आर्ष ग्रन्थों पर दृढ़ श्रद्धानी होता है वहां एक वैज्ञानिक सत्य को अपने विश्वास का केन्द्र विन्दु बनाता है । वह शास्त्रों को भी उतना ही मानता है जहां तक वह तर्क की कसौटी पर सही उतरते हैं। माँख मूंदकर वह किसी भी बात को मानने के लिये तैयार नहीं होता । आज के युग में विज्ञान की यह छाप स्पष्ट है । जीवन का प्रत्येक क्षेत्र उससे प्रभावित है। जादू वह है जो सिर पर चढ़कर बोले।