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का नन्होंने आवाहन किया। श्रद्धा, श्रुति, और संयमशील पराक्रम वे तीनों मला क्रमशः आत्मविश्वास, ज्ञान और चारित्र के समानार्थक है। दुर्लभ वस्तु के प्राप्त हो जान पर उसका किस प्रकार सम्यक् उपयोग किया जाये और उसे स्व-पर कल्याणकारी बनाया जाये यही जैन धर्म और दर्शन की मूल भूमिका रही है।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्पारिब इन तीनों तत्वों को रत्नत्रय कहा गया है। हर साधना की सफलता के लिए इन तीनों की समन्वित अवस्था को स्वीकार करना अपेक्षित है। जिस प्रकार औषधि पर सम्यक् विश्वास अपमा पूर्व परीक्षण तथा पश्चात् शान और आचरण किये बिना रोगी रोग से मुक्त नहीं हो सकता, उसी प्रकार संसारके जन्म-मरण रूपी रोग से मुक्त होने के लिये अथवा इष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिये रत्नत्रय का परिपालन आवश्यक है। क्रियाहीन ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानियों की क्रिया निष्फल है । दावानल से व्याप्त वन में जिस प्रकार नेत्रहीन व्यक्ति इधर-उधर दौड़कर भी जल जाता है
और पंग व्यक्ति देखते हुए भी जलने से बच नहीं पाता । यदि अंधा और पंगु दोनों साथ हो जाये और नेत्रहीन व्यक्ति के कंधे पर पंगु बैठ जाये तो दोनों का उद्धार हो जाना संभव है । पंगु मार्ग निर्देशन कर ज्ञान का कार्य करे और नेत्रहीन पैरों से चलकर चारित्र का कार्य करे तो दोनों बिना जले नगर में आ सकते हैं। एक चक्र से रथ नहीं चलता। अतः सम्यग्दर्शन पूर्वक सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र का संयोग ही कार्यकारी हो सकता है।
हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हता चाज्ञानिनां क्रिया धावन् किलान्धको दग्धः पश्यन्नपि च पंगुलः । संयोगमेवेह वदन्ति तज्ज्ञानमेकचक्रेण रथः प्रयाति अन्धश्च पंगुश्च वने प्रविष्टौ तौ संप्रयुक्ती नगरे प्रविष्टौ।'
जैन दर्शन में जो स्थान सम्यग्दर्शन का है वही स्थान बीनदर्शन में सम्मादिट्टि का है। दोनों का अर्थ भी प्रायः समान है। हर क्षेत्र के पथिक साधक के लिए साधना के प्रारम्भ में यह आवश्यक है कि वह जिस साधना पथ का अनुकरण करना चाहता है उसे समुचित रूप से समझे और विश्वास करे । यही श्रद्धा आत्मविश्वास और ज्ञान है । बात्मा की ये दोनों अविनश्वर शक्तियां हैं। जिस शक्ति से पदार्थ जाने जाते हैं वह ज्ञान है और जिससे तत्व श्रद्धान होता है वह दर्शन है। आत्मा में इन दोनों की प्रवृत्ति होती है। अखण्ड द्रव्य दृष्टि से आत्मा और ज्ञान में कोई भेद नहीं है। दर्शन से ही ज्ञान में सम्यक्त्व आता है
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१. तत्त्वार्यवार्तिक, १. १. ५१; तुलनार्थ देखिये, सूबमांग, १. १२. ११