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इसी प्रकार के सर्वतोभद्र मंदिर आबू के दिलवाडा मंदिर समूह में तथा पालीताना के समीप शत्रुजंय पहाड़ी पर स्थित करलवासी-टुक में निर्मित है । इन सभी मंदिरों में भित्तियों, छतों और स्तम्भों पर लहरदार पत्रावलियाँ, पत्र- पुष्प, शासन देवी- देवताओं और मूर्तियों आदि का अंकन बड़ी सुघड़ता से किया गया है । भरतपुर, मेवाड़, बागडदेश, कोटा, सिरोह, जैसलमेर, जोधपुर, नागर, अलवर आदि संभागों में भी जैन मंदिरों का निर्माण हुआ है ।
मध्य भारत :
मध्य भारत में प्राचीन कालीन जैन मन्दिर उपलब्ध नहीं होते । मध्य काल से ही यहाँ उनका निर्माण प्रारम्भ हुआ है । मध्य काल में कुण्डलपुर (दमोह) का जैन मन्दिर समूह वास्तु शिल्प की दृष्टि से अनुपम है। इनमें चौकोर पत्थरों से निर्मित शिखर हैं, वर्गाकार गर्भगृह तथा कम ऊंचे सादा वेदी बन्ध ( कुरसी) पर निर्मित मुख मण्डप हैं । मुख मण्डपों में चौकोर स्तम्भों का प्रयोग हुआ है । इनकी वास्तु शैली गुप्तकालीन कला का विकासात्मक रूप है। सतना जिले के पिथोना का पतियानी मन्दिर भी इसी शैली में निर्मित हुआ है ।
ग्यारसपुर का मालादेवी मन्दिर एक सांधार प्रासाद है जिसका कुछ भाग शैलोत्कीर्ण तथा कुछ भाग निर्मित है। इसका गर्भगृह पंच-रथ प्रकार का है तथा ऊपर रेखा शिखर है । मुख मण्डप, मण्डप, पीठ आदि सभी भाग अलंकृत हैं। शिखर, पंच-रथ, दिग्पालों और यक्ष यक्षिणियों की मूर्तियां अलंकृत शैली में बनी हुई हैं। आकर्षक कीर्तिमुख भी बना हुआ है । अलंकृत प्रदक्षिणा पथ है । अतः इसका रचनाकाल लगभग नवमी शताब्दी का है ।
देवगढ़ में लगभग ३१ मन्दिर हैं जो नौवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच बनाये गये हैं । १२वीं मन्दिर शान्तिनाथ का है जिसके गर्भगृह में १२ फुट ऊंची प्रतिमा है, गर्भगृह के सामने चौकोट मण्डप है जो छह स्तम्भों से अलंकृत है । यहीं भोजदेव (सन् ८६२) का शिलालेख लगा हुआ है। कुछ मन्दिरों में बड़े-बड़े कक्ष हैं जो चैत्यवासीय स्थापत्य के नमूने हैं । यहाँ अनेक शिलालेख मिलते हैं जो भाषा, काल और लिपि की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ।
ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच मध्यभारत में अनेक कलाकेन्द्रों का निर्माण हुआ । खजुराहो का निर्माण मदन वर्मा (सन् ११२७-६३ ) के शासन काल में हुआ । यहाँ के जैन मंदिर ऊंची जगती पर बने हैं और उनमें कोई प्राकार नहीं । खुला चंक्रमण और प्रदक्षिणापथ हैं। सभी भाग संयुजित और ऊंचे हैं । अर्धमण्डप, मण्डप, अन्तराल और गर्भगृह सभी मन्दिरों में हैं। अलंकृत शैली का