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पूर्व भारत में सात देउलिया का मंदिर मूलतः जैन मन्दिर रहा है। वह ईटों से बना है जिसे उड़ीसा की रेखा सैली कहा जाता है। इसका गर्भगृह सीधा और लंबाकार है और उस पर वक्ररेखीय शिखर है। वांकुरा जिले के अम्बिकानगर का जैन मन्दिर भी अलंकृत शैली में निर्मित हुआ है। इसकी रूपरेखा त्रिरथशैली में है। इस काल में खण्डगिरी की गुफाओं को गुफा मन्दिरों का रूप दिया गया। वहां की शैलभित्तियों पर तीर्थंकरों और शासन देवीदेवताओं का प्रतिरूपण हुआ।
पश्चिम भारत :
पश्चिम भारत में प्राचीन कालीन कुछ मूर्तियां तो मिलती है पर मन्दिरों के कोई अवशेष नहीं मिलते । अकोटा, बलभी, वसंतगढ, भिनमाल आदि से प्राप्त मूर्तियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में छठी से दशवीं शताब्दी के बीच जैन मन्दिरों का निर्माण अवश्य हुआ है, परन्तु उन्हें नष्ट कर दिया गया। साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि अनहिलवाई पाटन में वनराज चापोत्कर ने, चन्द्रावती में निन्नय ने और थराड़ में वटेश्वर सूरि ने जैन मन्दिरोंका निर्माण कराया। जिनसेन ने अपना हरिवंशपुराण सन् ७२३ में वर्धमान (बध्बन) स्थित पार्श्वनाथ मन्दिर (नन्नराजवसति) में रहकर किया। उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला ई.७७९ में जालौर के आदिनाथ मन्दिर में पूरी की। हरिभद्र सूरि ने चित्तोड़ में अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण कराया। और भी इसी प्रकार अनेक मन्दिरों को अलंकृत शैली में बनवाया गया है।
पश्चिम भारत में इस काल में चालुक्य शैली के मंदिर अधिक लोकप्रिय रहे। इनमें गर्भगृह, गूढमडप और मुखमंडप होते हैं जो एक दूसरे से जुड़े रहते है। इनकी साज-सज्जा अलंकृत वेदिकाओं से की गई है। उत्तरकालीन चालुक्य शैली में छह या नव चौकियोंवाला स्तम्भयुक्त मुखमंडप तथा देवकुलिकाओं का निर्माण हुआ। विवेच्यकाल में पश्चिमी भारत के आबू पर बने विमलवसही (१०३२ ई.) का आदिनाथ जैन मंदिर प्रसिद्ध है। संगमरमर के बने इस मन्दिर के गर्भगृह, गूढ मंडप और मुख मंडप मूल भाग हैं और शेष भाग बारहवीं शताब्दी में जोड़े गये है। इसी प्रकार के अन्य मन्दिर कुंभारिया में भी है। कुमारपालके ही समय उसके मन्त्री पृथ्वीपाल ने ११५० ई. में एक नृत्यमण्डप बनवाया। मण्डप को जोड़नेवाली गलयारे की छतें स्थापत्य की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। कुमारपाल का अजितनाथ मन्दिर सांधार प्रकार का एक मेरू प्रासाद है।
राजनीतिक सत्तासन् १२२० के आसपास चालुक्यों से बघेलों के हाथ आयी। बषेलों के मंत्री वस्तुपाल और तेजपाल ने गिरिनार, शत्रुजय, पाटन, जूनागद