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५. वृत्ताकार मंदिर जिनकी पीठिका चौकोर होती है। जैसे राजगृह का
मणियार मठ या सोनभण्डार के मंदिर।
पूर्व भारत :
प्राचीनतम जैन मन्दिर के प्रमाण के रूप में लोहानीपुर (पटना) को प्रस्तुत किया जा सकता है जहाँ कुमराहर और बुलंदीबाग की मौर्यकालीन कलाकृतियों की परम्परा के प्रमाण मिले हैं। यहाँ ८-१० फुट वर्गाकार की नींव मिली है और अनेक जैन मूर्तियां आदि प्राप्त हुई हैं। दुर्भाग्य से यहां का उत्खनन आगे नहीं बढ़ सका।
इसके बाद के जैन मन्दिरों के अस्तित्व के प्रमाण साहित्य में तो मिलते है पर पुरातत्व में नहीं। लगभग सातवीं शताब्दी से वे पुनः मिलने लगते हैं। जोधपुर जिले में ओसिया नामक स्थान पर एक मन्दिरों का समूह मिला है जिसमें सप्तम शताब्दी से लेकर दशम शताब्दी के और कदाचित् उत्तरकाल के भी न मन्दिर सम्मिलित हैं।
धानेराव का महावीर मन्दिर सांधार प्रासाद के रूप में है जिसमें प्रदक्षिणा पथ युक्त एक गर्भगृह, एक गूढ मण्डप, एक त्रिकमण्डप तथा द्वार मण्डप (मुखचतुष्की) सम्मिलित है। मंन्दिर के चारों ओर देव-कुलिकाओं से युक्त एक रंग मण्डप भी बना हुआ है। यह समूचा मंदिर एक ऊंचे प्राकार के भीतर स्थित है। इसके गर्भगृह की रचना शैली सरल है। उसमें केवल दो अवयव है-भद्र और कर्ण। प्रदक्षिणा पथ के तीन ओर बनाये गये भद्रप्रक्षेपों (छज्जों) को गूढ मण्डपों की भित्तियों की भांति सुंदर झरोखों द्वारा सजाया गया है। जिनसे प्रकाश प्रस्फुटित होता है। इसके बहिर्भाग में दिग्पालों, गंधवों, अप्सरामों, विद्यादेवियों और यक्ष-यक्षिणियों का अंकन अलंकृत शैली में हुआ है। यह लगभग दसवीं शती का मन्दिर है।
ओसिया में आठवीं से ग्यारहवीं शताब्दी तक के मंदिर समूह है। मुख्य जैन मन्दिर महावीर मंदिर है जो प्रतीहार वत्सराज के शासन काल का है। इसमें प्रदक्षिणा पथ के साथ गर्भगृह, अंतराल, पार्षभित्तियों के साथ गूढ मण्डप, त्रिक मण्डप तथा सीढ़ियां चढ़कर पहुंच जाने गोग्य मुख चतुष्की (बार मण्डप) सम्मिलित है। यह भी मार गुर्जर शैली की परवर्ती रचना है। गर्भगृह वर्गाकार में है। इसकी उठान में देवकुलिकायें (आले) तथा अलंकृत शैली में कुबेर, गजलक्ष्मी आदि देवी-देवताओं का अंकन है। वास्तुकला की दृष्टि से ये मन्दिर उल्लेखनीय है।