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७. अमितगति
(१० वीं शती)
८. वीरभद्र (११ वीं शती) ९. देवसूरि (११-१२वींशती)
१०. चामुण्डराय
( ११ वीं शती)
११. अमृतचन्द्रसूरि
(११ वीं शती)
१२. वीरनन्दि
(११ वीं शती)
१३. जिनबल्लभसूरि
(११-१२ वीं शती)
१४. सोमप्रभसूरि
(१२-१३ वीं शती)
१५. नेमिचन्द्रसूरि
(१३ वीं शती)
१६. आशाघर
(१३ वीं शती)
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आराधना
आराहणापडाया जीवानुशासन
चारित्रसार ( ? )
पुरुषार्थ सिद्धधुपाय
आचारसार
द्वादशकुलक
पिंडविसुद्धि
सिंदूरप्रकरण,
श्रङ्गार वैराग्यतरंगिणी
जइजीयकप्प
प्रवचनसारोद्धार
अनगारधर्मामृत
संस्कृत
प्राकृत
संस्कृत
"
संस्कृत
संस्कृत
प्राकृत
प्राकृत
संस्कृत
प्राकृत
प्राकृत
संस्कृत
मुनिचर्या
वैराग्य की फलश्रुति मुनिचर्या की स्वीकृति है । अत: दीक्षा के लिए योग्य श्रावक माता-पिता आदि से अनुमति लेकर योग्य गुरू के पास जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण कर लेता है ।
पीछे श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन करते समय हमने ग्यारहवीं प्रतिमा उद्दिष्टत्याग का स्वरूप देखा था । उसके उपरान्त नैष्ठिक श्रावक सकलचारित्र का धारक अनगार अवस्था का परिपालक हो जाता है । वह पाँच महाव्रत, पाँच समितियाँ, पंचेन्द्रियविजय, छह आवश्यक, केशलुञ्चन, अचेलकता, अस्नानता, भूशयन, स्थितिभोजन, अदन्तधावन, एवं एकमुक्ति इन अट्ठाईस