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उससे मुक्त होने के लिए वह अध्ययन, मनन और चिन्तन के माध्यम से अपनी प्रवृत्तियाँ निश्रेयस की ओर मोड़ देता है। उसका हर कार्य देशविरति से सर्व विरति की ओर लग जाता है।
मुनि आचार साहित्य:
प्रवृत्ति का यह चिन्तनात्मक पक्ष हमें संबद्ध साहित्य की ओर जानेको बाध्य कर देता है। इस सन्दर्भ में आचारांग, उपासकदशांग, दशवकालिक, निशीथ, मूलाचार, भगवती आराधना, रत्नकरण्डश्रावकाचार आदि ग्रंथ उल्लेखनीय हैं। यहां हम अर्घ-मागधी आगम के अतिरिक्त मुनि आचार सम्बन्धी अन्य प्रमुख साहित्य को उद्धृत कर रहे हैं१. कुन्दकुन्द
प्रवचनसार (तृतीय स्कन्ध) प्राकृत नियमसार (गाथा-७७-१५७ दसणपाहुड सुत्तपाहुड चरित्रपाहुड बोध पाहुड लिंग पाहुड शील पाहुड रयणसार
दशभक्तियां २. वट्टकेर
मूलाचार ३. उमास्वाति
प्रशमरति प्रकरण (?) संस्कृत तत्त्वार्थ सूत्र
संस्कृत ४. शिवार्य
भगवती आराधना (?) प्राकृत ५. हरिभद्रसरि
पंचवत्थुग पगदण (८ वीं शती)
सम्यक्त्व सप्तति पंचासग धर्मबिन्दु
संस्कृत ६. देवसेन (१० वीं शती) आराहणासार
प्राकृत