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से दृष्टान्ताभास के दो भेद है- अन्य दृष्टान्ताभास बार व्यतिरेक दृष्टान्ताभास । धर्मकीति ने दृष्टान्ताभास के अठारह भेद माने हैं। सिखसेन ने भी उन्हीं का अनुकरण किया। माणिक्यनन्दी ने नक के स्थानपर साधर्म्य और बंधई के वास्बार भंदकर कुम बाठ भेद किये। वादिदेवसरि ने १८ मोर हेमचना ने उसके १६ भेव स्वीकार कियं । दृष्टान्ताभास को उदाहरणामास भी कहा गया है। अनुमान का यह संक्षिप्त विवेचन है।' बारया :
प्राचीन काल में वादविवाद की परम्परायें बहुत अधिक प्रचालित ही हैं। प्रारम में ये वैदिक सम्पदाय में अधिक थीं पर उत्तरकाल में बौड और जैन परम्परायें भी उससे प्रभावित हुई। सुत्तनिपात में ब्राह्मणों को 'पावसीला' कहा गया और जब कभी तोथंकरों को भी इस विशेषण से अभिहित किया गया.। उन्हें 'तक्कि' और 'तक्किका' भी कहा गया । 'तक्क-हेतु' शब्द का भी प्रयोग हमा है।
यह शास्त्रीय परिपर्चा विशेषतः न्याय परम्परा में प्रचलित थी । वहाँ इसे 'कया' कहा गया है बोर इसी के भेदों में वाद, बल्प और वितण्डा का प्रयोग हुमा है। इनका मुख्य उद्देश्य अपने पक्ष का प्रस्थापन रहा है । वीतराग कथा को वाद, और विजयेच्छुकों की कथा को 'जल्प' और 'वितण्डा' माना जाता है । सुत्तनिपात में इन तीनों के उल्लेख मिलते हैं। बुरषोष ने 'वितण्णासत्व' का सम्बन्ध वैदिक परम्परा से जोड़ा है जबकि सद्दनीतिकार ने उसे तित्थियों से सम्बद्ध किया है। बाद में विजय पाने के लिए न्याय परम्परा में छल, जाति और निग्रहस्थानों का प्रयोग विहित माना गया है। वहाँ यह स्पष्ट कहा गया है कि जिस प्रकार खंत की रक्षा के लिए कांटेदार वाड़ी की गावश्यकता होती है उसी प्रकार तत्वसंरक्षण के लिए जल्प और विता में छल, जाति बादिका प्रयोग अनुषित नहीं है।'
बोलपम्परा भी इसी विचार से प्रभावित हुई। उपायहरका बादि अन्यों में बौद्ध संसति के संरक्षण की दृष्टि से छल, पाति मादि के प्रयोग को स्वीकार किया, परधर्मकीति ने इसका समर्थन नहीं किया। अहिंसा बोर सत्य की पृष्ठभूमि में इसीलिए उन्होंने निग्रहस्थानों में बादी बौर प्रतिवादी
१. जन तकशास्त्र में अनुमान विचार, जैन धर्म-गर्वन बाविसव भी इष्टब। २. न्यायसूत्र, ४.२.५. ३. उपायहाय, पृ..