________________
इसी को दूसरे रूम में सिबसेन ने अपना मत व्यक्त किया कि व्यक्ति मार में हेतुसेगार जानबाद में बाक्म से सल पर विचार करे। ऐसा ही विचारक तनाव का प्रशासक बार मन्य सिदान्त का विराषक होता है।
जो ग्वाय पावनि हेवीवानमिवालमयो।
सो ससमयपण्णवनी सितविरहयो अनी कि :
इस प्रकार निदर्शन के अनुसार प्रमाण के दो भेद हुए-प्रलल वीर परोल-। बम का पर्व मूक्तः आत्मारा। बत: वात्मा के प्रत्यक्ष में बानेबामा जान प्रत्यक्ष और इखियजन्य ज्ञान परोम हुवा। बाद में लोकव्यवहार को इष्टिमय में रखते हुए इन्द्रियण प्रत्यक्ष को सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष और विमुख भात्मा में उत्पन्न होनेवाला शान बनिन्द्रिय प्रत्यक्ष अथवा पारमार्षिक प्रत्यक्ष कहा गया । कालान्तर में इसी को परोक्ष भी कहा जाने लगा।
ज्ञान के दो कारण है- अन्तरंग कारण और बाहय कारण । क्षयोपशम विशेषरूप योग्यता अन्तरंग कारण है और बाहय कारणों में इन्द्रिय प्रत्यक्षा और मानस प्रत्यक्ष आते हैं जिनसे शान-शक्ति की अभिव्यक्ति होती है। कतिपय दार्शनिक भयं और बालीक कोशान के कारणों में गिनते हैं। पर जैन दार्शनिक इसे स्वीकार नहीं करते । इसका मूलकारण यह है कि उन कारणों में मन्वयव्यतिरेक और कार्य-कारण माकानी पुष्टि नहीं होती। अपने विषयभूत पदार्थों के न होने पर भी इन्द्रियघोष कारण सब-विमर्षय बाविज्ञान हो जात हैं। पक्षयो'का अस्तिष रमपर भी इन्द्रिय बार मन का व्यापाएन होने पर पुषुप्त और मूछित अपस्या नहीं होता। अतः अपने-अपने कारणों उतान और बसपारपरकाकभाव की तरह मेर-सेवक भावनाला हापित है। देवातबारा पनेअपने कारणों से उत्तम होकर मीनार का बना है। उसी तरह अपने-अपने कारणों से उत्पन्न भय बोर मान में भी साधनमालक मार हो जाता है।
२. तपिनिमाविमानातला . ३.वहेपनितोप्वः परिवः स्वखो गया । वामा तत्व परिणामस्वतः॥पीवल्लक, ५९