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स्फोट का उपकार करेंगी या स्रोत्रका या दोनों का? वे तीनों का उपकार नहीं कर सकती क्योंकि अमूर्त, नित्य मौर अभिव्यङ्गप स्फोट में विकार हो नहीं सकता । और फिर जब ध्वनियाँ उत्पत्ति के बाद ही नष्ट हो जाती है वर स्फोट की अभिव्यक्ति कैसे करेंगी। अतः शब्द ध्वनि रूप ही हैबार कह नित्यानित्यात्मक है। वह पुदगल द्रव्य की दृष्टि से नित्य है, धोत्रेन्द्रिय के द्वारा सुनने योग्य पर्याय सामान्य की दृष्टि से कालान्तर स्थायी है और प्रतिक्षण की पर्याय की अपेक्षा क्षणिक है।
बन्ध दो प्रकार का है-प्रायोगिक और पैनसिक । प्रायोगिक बन्द प्रयोगजन्य होता है। उसमें मन, वचन और काय का संयोग होता है। प्रायोगिक बन्ध दो प्रकार का होता है-अजीवविषयक और जीव विषयक । भानावरमादि फर्म और मोदारिक शरीर बादिल्प नोकर्म बन्ध जीव और अजीव विषयक है। वैनसिक बन्ध दो प्रकार का है-आदिमान् और अनादिमान् । स्निग्ध रूम गुणों के निमित्त से बिजली, उल्का, जलधारा, इन्द्रधनुष मावि रूप पुद्गलबन्ध बादिमान् है। , अधर्म आकाश और काल का कभी भी परस्पर वियोग नहीं होता बत: इनका बनाविबन्ध है। सौम्य और स्पोल्य: . ये दो दो प्रकार के है-एक अन्त्य बौर दूसरा बापेक्षिक। अन्स्य सविम्य परमाणुगों में है और आपेक्षिक सौम्य और, मावला बादि में है। इसी तरह अन्त्य स्थौल्य जगद्व्यापी महास्कन्ध में तथा आपेक्षिक सौषम्य बेर, पांवला, बेल आदि में है। संस्थान और मेर।
संस्थान (आकृति) दो प्रकार का है- इत्यंलक्षण और बनित्वंसान। पोन, त्रिकोण, चतुष्कोण बादि रूप से जिसका वर्णन किया जा सके यह इत्पलक्षण है। तथा उससे भिन्न मेष बादि का संस्थान जिसे निरूपितम किया जा सके वह बनित्पंलक्षण है।
मेरे छः प्रकार का है-उत्कर (पीरला), पूर्ण, बण्ड, चूणिका (वाल बनाना), प्रतर (बत्रपटल), और अनुषटन (स्फुलिङ्ग)। अन्धकार, जावा मार मातप :
दृष्टि का प्रतिबन्धक अन्धकार है।बह प्रकाश का बभाव मात्र नहीं बसा मैयायिक मानते , बल्कि वह प्रकाश के समान ही भावसम्म।