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निम्नलिखित दस ग्रन्थों पर लिखी गई हैं- आवश्यक, दशवेकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित । इनमें अन्तिम दो निर्युक्तियाँ उपलब्ध नहीं । इन नियुक्तियों की रचना प्राकृत पद्मों में हुई है। बीच बीच में कथाओं और दृष्टान्तों को भी नियोजित किया गया है। सभी निर्युक्तियों की रचना निक्षेप पद्धति में हुई है । इस पद्धति में शब्दों के अप्रासंगिक अर्थों को छोड़कर प्रासंगिक अर्थों का निश्चय किया गया है ।
'आवश्यक निर्युषित' में छ: अध्ययन हैं- सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान । इसमें सप्तनिन्हव तथा भ. ऋषमदेव और महावीर के चरित्र का आलेखन हुआ है । इस नियुक्ति पर जिनभद्र, जिनदासगणि, हरिभद्र, कोटचाचार्य, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्र, माणिक्यशेखर आदि आचार्यों ने व्याख्या ग्रन्थ लिखे । इसमें लगभग १६५० गाथायें हैं । 'दशवैकालिक' निर्युक्ति ( ३४१ गा.) में देश, काल आदि शब्दों का निक्षेप पद्धति से विचार हुआ है । उत्तराध्ययन निर्युक्ति (६०७ गा. ) में विविध धार्मिक और लौकिक कथाओं द्वारा सूत्रार्थ को स्पष्ट किया गय है । आचारांग निर्युक्ति ( ३४७ गा. ) में आचार, अंग, ब्रह्म, चरण आदि शब्दों का अर्थ निर्धारण किया गया है । सूत्रकृतांग निर्युक्ति ( २०५ गा. ) में मतमतान्तरों का वर्णन है । दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति में समाधि, स्थान, दसश्रुत आदि का वर्णन है । यह निर्युक्ति वृहत्कल्पनिर्युक्ति ( ५५९ गा.) और व्यवहारनियुक्ति के समान अल्पमिश्रित अवस्था में उपलब्ध होती है । इनके अतिरिक्त पिण्ड निर्युक्ति, ओषनिर्युक्ति, पंचकल्पनिर्युक्ति, निशीथनियुक्ति और संसक्तनिर्युक्ति भी मिलती हैं । भाषाविज्ञान की दृष्टि से इन निर्युक्तियों का विशेष महत्व है ।
९. भाष्य साहित्य
निर्युक्तियों में प्रच्छन्न गूढ़ विषय को स्पष्ट करने के लिए भाष्य लिखे गये। जिन आगम ग्रन्थों पर भाष्य मिलते हैं वे हैं- आवश्यक, दशवेकालिक, उत्तराध्ययन, बृहत्कल्प, पंचकल्प, व्यवहार, निशीथ, जीतकल्प, ओषनिर्युक्ति और पिण्डनिर्युक्ति । ये सभी भाष्य पद्यवद्ध प्राकृत में हैं । आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य मिलते हैं- मूलभाष्य, भाष्य और विशंषावश्यकभाष्य । 'विशेषावश्यकभाष्य ” आवश्यकसूत्र के मात्र प्रथम अध्ययन सामाकयि पर लिखा गया है फिरभी उसमें ३६०३ गाथायें हैं। इसमें आचार्य जिनभद्र ( लगभग वि. सं. ६५०-६६०) ने जैन ज्ञान बोर तावमीमांसा की दृष्टि से सामग्री को संकलित
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