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की संख्या लगभग १४००० मानी गई है परन्तु बल्लभी वाचना के समय निम्नलिखित दस ग्रन्थों का ही समावेश किया गया है-चडसरण, आउरपच्चक्खाण, महापच्चक्खाण, भत्तपइणा, तंदुलवेयालिय, संथारक, गच्छायार, गणिविज्जा, देविंदपह, और मरणसमाहि । 'चडसरण' में ६३ गाथायें हैं जिनमें अरिहंत, सिद्ध, साधु, एवं केवलिकथित धर्म को शरण माना गया है । इसे वीरभद्रकृत माना जाता है । 'आउरपच्चक्खाण' में वीरभद्रने ७० गाथाओं में बालमरण
और पण्डितमरण का व्याख्यान किया है । महापच्चक्खाण में १४२ गाथायें है जिनमें व्रतों और आराधनाओं पर प्रकाश डाला गया है। 'भत्तपइणा' में १७२ गाथायें है जिनमें वीरभद्र ने भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और पादोपगमन रूप मरण भेदों के स्वरूप का विवेचन किया है। तंदुलवेयालिय' में १३९ गाथाएँ हैं और उनमें गर्भावस्था, स्त्री स्वभाव तथा संसार का चित्रण किया गया है। 'संथारक' में १२३ गाथायें है जिनमें मृत्युशय्या का वर्णन है । 'गच्छायार' में १३० गाथायें है जिनमें गच्छ में रहने वाले साधु-सध्वियों के आचार का वर्णन है । 'गणिविज्जा' में ८० गाथायें है जिनमें दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, मुहूर्त आदि का वर्णन है । देविंदथह (३०७ गा.) में देवेन्द्रकी स्तुति है। मरणसमाहि (६६३ गा.) में आराधना, आराधक, आलोचना, सल्लेखना क्षमायापन आदि पर विवेचन किया गया है।
इन प्रकीर्णकों के अतिरिक्त तित्थुगालिय, अजीवकप्प, सिद्धपाहुड, आराहण पहाआ, दीवसायरपण्णत्ति, जोइसकरंडव, अंगविज्जा, पिंडविसोहि, तिहिपइण्णग, सारावलि, पज्जंताराहणा, जीवविहत्ति, कवचपकरण और जोगिपाहुड, ग्रन्थों को भी प्रकीर्णक श्रेणि में सम्मिलित किया जाता है ।
७. आगमिक व्याख्या साहित्य उपर्युक्त अर्धमागधी आगम साहित्य पर यथासमय नियुक्ति भाष्य, चूणि, टीका विवरण, वृत्ति, अवचूर्णी पंजिका एवं व्याख्या रूप में विपुल साहित्य की रचना हुई है । इनमें आचार्यों ने आगमगत दुर्बोध स्थलों को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है । इस विद्या में नियुक्ति, भाष्य, चूणि, और टीका साहित्य विशेष उल्लेखनीय है।
८. नियुक्ति साहित्य जिस प्रकार यास्क ने वैदिक पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या के लिए निरुक्त की रचना की उसी प्रकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने आगमिक सदों की व्याख्या के लिए नियुक्तियों का निर्माण किया । ये नियुक्तियां