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विज्ञान बन जाता है । विज्ञान, त्याग व प्रत्याख्यान की ओर ले जाता है । त्याग से सयम भाव अर्थात् अपने पर नियत्रण की प्रवृत्ति विकसित होती है, जिससे दुष्प्रवृत्तियाँ रुकती हैं और सप्रवृत्तियां वृद्धिमान होती हैं । इस प्रकार जीवन-निर्माण का क्रम सतत विकास को प्राप्त होता रहता है । इसी दृष्टि से भगवान् महावीर ने कहा है
__नाणेण विणा न हुति चरणगुणा ।' अर्थात् ज्ञान के अभाव मे चरित्र-सयम नही होता।
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उत्तराध्ययन सूत्र २८।३०