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जैन-दर्शन के उपद्रव होने पर भी अपने आसन से कभी चलायमान नहीं होते । वहां पर भी वे प्राणियों की रक्षा करने में तत्पर रहते हुए ज्ञान ध्यान में लीन रहते हैं और इस प्रकार निपद्या पर पहविजय प्राप्त करते हैं।
शय्या-वे मुनिराज रात्रि में बहुत थोडी देर तक शयन करते हैं तथ पथरीली कंकरीली जैसी भूमि होती है उसी पर किसो एक करवट से सोते हैं । जीवों की वाधा के डरसे करवट नहीं बदलते तथा भयानक जंतुओं के डरसे कभी भयभीत नहीं होते। जहां शयन किया है वहां से किसी भी कारण से शीघ्र उठजाने का प्रयत्न नहीं करते । उस समय व्यंतर आदि के द्वारा कोई उप-. द्रव होने पर भी धीरता पूर्वक वहीं पर रात्रि व्यतीत करते हैं । इस प्रकार शय्या की बाधा सहन करना शय्या परीपह जय है।
आक्रोश-मुनिराज आहार के लिये गांव या नगर में आते हैं उनको देखकर अनेक दुष्ट लोग उनसे दुर्वचन कहते हैं । मर्मच्छेदक वचन कहते हैं; तथापि वे मुनिराज उन वचनों को सुनते हुए भी अपने ही अशुभ कर्मों के उदयका चितवन करते हैं । यद्यपि उन मुनियों में ऋद्धियां प्राप्त होने के कारण उन दुष्टों को भस्म तक करने की सामर्थ्य होती है तथापि वे मुनिराज शांति पूर्वक उनको सहन करते हैं । इस प्रकार अनिष्ट वचनों का सहन करना आक्रोशपरीषह जय है। ___ बध-अनेक दुष्ट लोग मुनियों को मारते हैं. बांधते हैं, जला देते हैं तथा उनके प्राण नाश तक कर देते है तथापि वे मुनिराज