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जैन-दर्शन क्षुधा, प्यास, इन्द्रिय विजय, वन बिहार आदि अरति के कारण उपस्थित होने पर भी धीरता पूर्वक उन बाधाओं को सहन करते हैं। वे किसी से किसी प्रकार का नहीं करते और न उन बाधाओं के कारण मन में मलिनता लाते हैं। इस प्रकार अरति को जीतना अरति परीषह विजय है।
स्त्री-वे मुनिराज एकांत में विराजमान रहते हैं। उस समय अनेक दुष्ट स्त्रियां आकर हाव भाव विलास के द्वारा विकार उत्पन्न करने की चेष्टा करती हैं परंतु वे मुनिराज कछुए के समान अपनी. इन्द्रियों को संकुचित कर लेते हैं तथा उनको देखने तक की कभी इच्छा नहीं करते। इस प्रकार स्त्रियों के द्वारा किये हुए उपद्रवों को सहन करना स्त्री परीषंह जय है।
चर्या-वे मुनिराज अनेक वर्ष तक गुरु के समीप रहकर समस्तं तत्त्वों को वा आत्म-तत्त्वको समझलेते हैं और गुरुकी
आज्ञानुसार तीर्थ गमन आदि के लिये विहार करते हुएं भयानक वनों में कंकरीली पथरीली भूमि में होकर ईर्या समिति पूर्वक चलते हैं। वे अपनी चर्या में कभी किसी प्रकारका दोष नहीं लगाते । इस प्रकार निर्दोष रूप से. चर्या करना-उसमें किसी प्रकार का खेद न मानना चर्या परीषह जय है।
निषद्या-वे मुनिराज पहले कभी न देखी हुई गुफाओं में सूने खंडहर में श्मशान में या अन्य ऐसे ही स्थानों में विराजमान होकर ध्यान धारण करते है। वहां पर अनेक वनचर पशु पक्षियों