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जेन-दर्शन उरण-गर्मी के दिनों में भी मुनिराज पर्वत के उपर तपश्चरगा करते हैं, जहां सूर्य की धूप अत्यंत उग्र होती है और नीचे मे पत्थर भी गर्म होता है। गर्म लू चलती है जिसमें वृक्षतक सूब जाते हैं, नदियां व सरोवर भी सूख जाते हैं। ऐसी गर्मी में भी मुनिराज निश्चल ध्यान लगाकर विराजमान बने रहते हैं। वे न कभी स्नान करते हैं और न शरीर पर पानी डालकर गर्मी की वाधा दूर करते हैं। इस प्रकार गर्मी की वाधाको सहन करना उष्ण परीपह जय है।
दंशमशक-दंश मशक का अर्थ बांस मच्छर हैं । टांस मच्छर कहने से बरं, ततैया, बिच्छू श्रादि सब लिये जाते हैं । वे मुनिराज नग्न रहते हैं । डांस मच्छर ततैया श्रादि काटते हैं परतु वे मुनिराज शरीर से निस्पृह होकर उन सबका दुःख सहन करते हैं; उनको निवारण करने का कभी प्रयत्न नहीं करते और न करने देते हैं। इस प्रकार का बाधा सहन करना दशमशक परीपह जय है।
नाग्न्य-वे मुनिराज परम दिगंवर अवस्था धारण करते हैं। सदा काल गुप्ति समितियों के पालन करने में लगे रहते हैं । स्त्रियों के स्वरूपको अत्यंत निंद्य चितवन करते हैं। तथा दिगम्बर अयस्थाको ही परम कल्याण करने वाला समझते हैं । इस प्रकार पूर्ण ब्रहा. चये पालन करते हुए नम रूप धारण करना नाग्न्य परीपद जय है।
अरति-वे मुनिराज इन्द्रिय सुखों को विष मिले.आहार के समान समझते हुए सदा काल संयम में ही अनुराग रखते हैं :