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जैन दर्शन
२१३] रहते हैं शेष असंख्यात द्वीपों में तिथंच रहते हैं । इसीलिये मध्य लोक को तिर्यग लोक कहते हैं। ___ इन पैंतीस क्षेत्रों में पांच भरत पांच ऐरावत हैं। इनमें काल चक्र घूमा करता है । कालका परिवर्तन हुआ करता है। पांच हैमवत और पांच हैरण्यवतों में जघन्य भोग भूमि है। पांच हरि रम्यक क्षेत्रों में मध्यम भोग भूमि है तथा विदेह क्षेत्रों में अपने अपने मेरु पर्वत के समीप देवकुरु उत्तरकुरु दो क्षेत्र हैं। उनमें सदा काल उत्तमभोग भूमि रहती है । शेष विदेह क्षेत्र में सदा काल कर्मभूमि रहती है. सदाकाल तीर्थकर और मुनि रहते हैं और सदाकाल चौथे कालके प्रारंभ का सा समय रहता है।
तीसरे द्वीपके मध्य भाग में गोल मानुषोत्तर पर्वत है उससे पुष्कर द्वीप के दो भाग होगये हैं। मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत के आगे नहीं जा सकते।
धातकीद्वीप और आधे पुष्कर द्वीप के मध्य में उत्तर दक्षिण लवे दो इक्ष्वाकार पर्वत पडे हुए हैं। जिससे उनके दो दो भाग हो गये है । एक पूर्व भाग और दूसरा पश्चिम भाग। इन दोनों भागों में एक एक मेरु पर्वत हैं । इस प्रकार पांच मेरु पर्वत हैं। तथा पांच पांच ही भरत ऐरावत देवकुरु उत्तर कुरु आदि क्षेत्र हैं। यह सब रचना अनादि कालीन है इसमें कभी किसी प्रकार भी परिवर्तन नहीं होता। . इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र की उत्तर दक्षिण चौडाई पांचसौ छत्रीस योजन तथा एक योजन के उन्नीसवें भाग में से छह भाग